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________________ [ नेमिनाथमहाकाव्य कथानक नेमिनाथमहाकाव्य के बारह सों मे तीर्थकुर नेमिनाथ का जीवनचरित निवद्ध करने का उपक्रम किया गया है। कवि ने जिस परिवेश में जिन-चरित प्रस्तुत किया है, उसमे उसकी कतिपय प्रमुख घटनामो का ही निरूपण मम्भव हो सका है। __ प्रयम मग मे यादवराज समुद्रविजय की पत्नी शिवादेवी के गर्भ में वाईमवें जिनेश के अवतरण का वर्णन है । अलकारो की विवेकपूर्ण योजना तथा विम्बवैविध्य के द्वारा कवि राजधानी सूर्यपुर का रोचक कवित्वपूर्ण चित्र अकित करने में समर्थ हुआ है। द्वितीय सर्ग मे शिवादेवी परम्परागत चौदह स्वप्न देखती है। समुद्र विजय स्वप्नफल बतलाते हैं कि इन स्वप्नो के दर्शन से तुम्हे प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा, जो अपने भुजबल से चारो दिशाओ को जीत कर चौदह भूवनो का अधिपति बनेगा। प्रभात-वर्णन नामक इस मर्ग के शेपाश में प्रभात का मामिक वर्णन हुआ है। तृतीय मर्ग मे ज्योतिपी उक्त म्वप्नफल की पुष्टि करते हैं। समय पर शिवा ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। चतुर्थ सर्ग में दिक्कुमारियां नवजात शिशु का सूतिकर्म करती हैं। मेर-वर्णन नामक पचम मर्ग मे इन्द्र शिशु को जन्माभिषेक के लिये मेरु पर्वत पर ले जाता है। इसी प्रसग मे मेरु का वर्णन किया गया है। छठे मर्ग में शिशु के स्नायोत्सव का वर्णन है। सातवें मर्ग मे चोटियो से पुत्र-जन्म का समाचार पाकर समुद्रविजय आनन्दविभोर हो जाता है। वह पुत्रप्राप्ति के उपलक्ष्य में राज्य के समस्त वन्दियो को मुक्त कर देता है तथा जीववध पर प्रतिवन्ध लगा देता है। शिशु का नाम अरिएनेमि रखा गया । आठवे मर्ग में अरिष्टनेमि के शारीरिक सौन्दर्य एव शक्तिमत्ता का तथा परम्परागत छह ऋतुओं का हृदयग्राही वर्णन है। एक दिन नेमिनाथ ने पाचजन्य को कौतुकवश इम वेग से फूका कि तीनो लोक भय से कम्पित हो गये । और शक्तिपरीक्षा में कृष्ण को परास्त कर उन्हे आशकित कर दिया कि कही यह मुझे
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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