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________________ [ नेमिनाथमहाकाव्य ___ कथानक के निर्वाह की दृष्टि से नेमिनाथमहाकाव्य को सफल नही कहा जा सकता। कीतिराज का कथानक अत्यल्प है, किन्तु कवि ने उसे विविध वर्णनो, सवादो तथा स्तोत्रो से पुष्ट-पूरित कर बारह सर्गों के विस्तृत आलवाल मे आरोपित किया है। यह विस्तार महाकाव्य की कलेवर-पूर्ति के लिये भले ही उपयुक्त हो, इससे कथावस्तु का विकासक्रम विशृखलित हो गया है और कथा प्रवाह की सहजता नष्ट हो गई है । पग-पग पर प्रासगिकअप्रासगिक वर्णनो के सेतु बाँध देने से काव्य की कथावस्तु रुक-रुककर मन्द गति से आगे बढती है। वस्तुत , कथानक की ओर कवि का अधिक ध्यान नहीं है। काव्य के . अधिकाश मे वर्णनो की ही भरमार है। कथावस्तु का सूक्ष्म सकेत करके कवि तुरन्त किसी-न-किसी वर्णन मे जुट जाता है । कथानक की गत्यात्मकता का अनुमान इसी से किया जा सकता है कि तृतीय सर्ग मे हुए पुत्रजन्म की सूचना समुद्र-विजय को सातवें सर्ग मे मिलती है। मध्यवर्ती तीन सर्ग शिशु के सूतिकर्म, जन्माभिषेक आदि के विस्तृत वर्णनो पर व्यय कर दिये गये हैं। तुलनात्मक दृष्टि से यहाँ यह जानना रोचक होगा कि रघुवश मे, द्वितीय सर्ग मे जन्म लेकर रघु, चतुर्थ सर्ग मे, दिग्विजय से लौट भी आता है। काव्य के अधिकाश भाग का मुलकथा के माथ सम्बन्ध बहुत सूक्ष्म है। इसलिये काव्य का कथानक लंगडाता हुआ ही चलता है। किन्तु यह स्मरणीय है कि तत्कालीन महाकाव्य-परिपाटी ही ऐसी थी कि मूलकथा के सफल विनियोग की अपेक्षा विपयान्तरो को पल्लवित करने मे ही काव्यकला की सार्थकता मानी जाती थी। मत कीतिराज को इसका सारा दोष देना न्याव्य नही । वस्तुत , उन्होंने इन वर्णनो को अपनी वहश्र तता का क्रीडागन न बनाकर तत्कालीन काव्यरूढि के लौहपाश से बचने का श्लाघ्य प्रयत्न किया है। नेमिनाथमहाकाव्य में प्रयुक्त कतिपय काव्यरूढियाँ मस्कृत महाकाव्यो की रचना एक निश्चित ढर्रे पर हई है जिससे उनमें अनेक शिल्पगत समानताये दृष्टिगम्य होती है। शास्त्रीय मानदण्डो के निर्वाह
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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