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________________ नेमिनाथमहाकांन ] [ ५ अल्पावस्था में, सम्वत् १९४६३ की आषाढ कृष्णा एकादशी को, आचार्य जिनवर्द्धनसूरि से दीक्षा ग्रहण की। आचार्य ने नवदीक्षित कुमार का नाम कीर्तिराज रखा । कीर्तिराज के साहित्य गुरु भी जिनवर्द्ध नसूरि ही थे । उनकी प्रतिभा तथा विद्वत्ता से प्रभावित होकर जिनव नसूरि ने उन्हे सवत् १४७० मे वाचनाचार्य पद पर तथा दस वर्ष पश्चात् जिनभद्रमूरि ने उन्हे मेहवे मे, उपाध्याय पद पर प्रतिष्ठित किया । पूर्व देशो का विहार करते समय जब कोतिराज का जैसलमेर में आगमन हुआ, तो गच्छनायक जिनभद्रसूरि ने उन्हे सम्वत् १४९७ मे आचार्य पद प्रदान किया । तत्पश्चात् वे कीतिरत्न सूरि नाम से प्रख्यात हुए । उन्होंने पच्चीस दिन की अनशन-आराधना के पश्चात् सम्वत् १५२५ मे, ७६ वर्ष को प्रोढावस्था मे वीरमपुर मे देहोत्सर्ग किया । संघ ने वहाँ एक स्तूप का निर्माण कराया, जो अब भी विद्यमान है । जयकीत्ति तथा अभयविलासकृत गीतो से ज्ञात होता है कि सम्वत् १८७६ मे गडाले ( बीकानेर का समीपवर्ती ग्राम नाल) मे उनका प्रासाद वनवाया गया था । नेमिनाथकाव्य के अतिरिक्त उनके कतिपय स्तवनादि भी उपलब्ध हैं । ' " नेमिनाथमहाकाव्य उपाध्याय कीतिराज की रचना है । कीतिराज को उपाध्याय पद मम्वत १४८० मे प्राप्त हुआ था और स० १४६७ मे वे आचार्य पद पर आसीन होकर कीतिरत्न सूरि वन चुके थे । नेमिनाथकाव्य स्पष्टतः स० १४८० तथा १४९७ के मव्य लिखा गया होगा । सम्वत् १४९५ मे लिखित इसकी प्राचीनतम प्रति के आधार पर नेमिनाथकाव्य को उक्त सम्वत् की रचना मानने की कल्पना की गई है । यह तथ्य के बहुत निकट है- 1 1 3 7 31' १. विस्तृत परिचय के लिये देखिये श्री अगरचन्द नाहटा तथा भवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित 'ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह, पृ० ३६-४० 1 - २. जिनरत्नकोश, विभाग १, पृ० २१७ । -
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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