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________________ ४ ] [ नेमिनाथमहाकाव्य इन समूचे पौराणिक तत्वो के विद्यमान होने पर भी नेमिनायकाव्य को पौराणिक महाकाव्य नही माना जा सकता । इसमे शास्त्रीय महाकाव्य के के लक्षण इतने स्पष्ट तथा प्रचुर हैं कि इसकी पौराणिकता उनके सिन्धुप्रवाह मे पूर्णतया मञ्जित हो जाती है । वर्ण्य-वस्तु तथा अभिव्यजना-शैली में वैषम्य, यह ह्रासकालीन शास्त्रीय महाकाव्य की मुख्य विशेषता है, जो नेमिनाथ काव्य मे भरपूर विद्यमान है । शास्त्रीय महाकाव्यो की भांति इसमे वस्तुव्यापार के वर्णनो की विस्तृत योजना की गई है । वस्तुत , काव्य मे इन्ही का प्राधान्य है और इन्ही के माध्यम से, कवि-प्रतिभा की अभिव्यक्ति हुई है । इसकी भापाशैलीगत प्रौढता तथा गरिमा और चित्रकाव्य के द्वारा रचना-कौशल के प्रदर्शन की प्रवृत्ति इसकी शास्त्रीयता का निर्धान्त उद्घोष है । इनके अतिरिक्त अलकारो का भावपूर्ण विधान, काव्य-रूढियो का निष्ठापूर्वक विनियोग, तीव्र रम व्यजना, सुमधुर छन्दो का प्रयोग, प्रकृति तथा मानव-सौन्दर्य का हृदयग्राही चित्रण आदि शास्त्रीय कायों की ऐसी विशेषतायें इस काव्य मे हैं कि इसकी शास्त्रीयता मे तनिक सन्देह नही रह जाता। वस्तुत', नेमिनाथमहाकाव्य की समग्र प्रकृति तथा वातावरण शास्त्रीय शैली के महाकाव्य के समान है । मत इसे शास्त्रीय महाकाव्य मानना सर्वथा न्यायोचित है । कविपरिचय तथा रचनाकाल - अधिकाश जैन काव्यो की रचना-पद्धति के विपरीत नेमिनाथमहाकाव्य मे प्रान्त-प्रशस्ति का अभाव है। काव्य , से भी कीतिराज के जीवन अथवा स्थिति-काल का कोई सकेत नहीं मिलता । अन्य ऐतिहासिक लेखो के आधार पर उनके जीवनवृत्त का पुननिर्माण करने का प्रयत्न किया गया है। उनके अनुसार कोतिराज अपने समय के प्रख्यात तथा प्रभावशाली खरतरगच्छीय आचार्य थे । वे सखवाल गोत्रीय शाह कोचर के वणज दीपा के कनिष्ठ पुत्र थे । उनका जन्म सम्बत् १४४६ मे दीपा की पत्नी देवलदे की कुक्षि से हुआ। उनका जन्म का नाम देल्हाकु वर था। देल्हाकु वर ने 'चौदह वर्ष की
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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