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________________ नेमिनाथमहाकाव्यम् ] षष्ठ सर्ग [ १११ जिनके होठ पके हुये विम्ब फल के समान लाल थे, पेट त्रिवटी से विभूपित थे, और मनोरम लम्वी वाहे ऐसी अद्भुत लगती थीं मानों वे वीर काम के भाले हो ॥५१।। वजते हुए नूपुरो के शब्द से मनोहर तथा निर्दोष शोभा से सम्पन्न जिनके पैर, भिनभिनाते भौरो से शोभित खिलते हुए स्वर्ण-कमल को पराजित करते थे ॥५२॥ तव गम्भीर ध्वनि वाले चार प्रकारके वाद्योंके बजाए जाने पर तथा गन्धर्व वालाओ द्वारा ऊपर मुंह करके सुन्दर गीत गाने पर, नृत्यकला मे पारगत तथा आनन्द रस से परिपूर्ण उन मृगनयनी अप्सराओ ने, इन्द्र की माज्ञा से, देवकुमारो के साथ जिनेन्द्र के सामने सगीत प्रारम्भ किया ॥५३-५४॥ । _____ताल के अनुकूल नृत्य करती हुई (उनमे से) किसी एक ने, जिसकी रेशमी चोली कसकर ववी थी और वेणी स्थूल नितम्वो को छू रही थी, इन्द्रो को क्षण भर के लिये चित्र मे अकित-सा कर दिया ॥५॥ ' किसी दूसरी ने, जिसके हाथ हिलते कगन से सुशोभित थे और मुह मुस्कराहट से खिला हुआ था, अपनी ढीली नीवी को विलासपूर्वक कसकर बांधा मानो वह सम्राट् काम की मुद्रा हो ॥५६॥ ___ कामातुर कोई अन्य देवागना, जिसके पांव मे नूपुर बज रहे थे, एक हाथ कटि पर रखकर और दूसरे से बार-बार अभिनय करती हुई जल्दीजल्दी चलने लगी ॥५७॥ हिलते हुए कुण्डलो की कान्ति रूपी जल से धुलने के कारण चमकती गालो वाली कोई दूसरी, सामने नाचते हुये किसी कामाकुल-चित्त युवक को लडखडाता देखकर हस पडी ॥५॥ छरहरे शरीर वालो कोई अन्य अपने अङ्गो को सुन्दर ढग से हिलाती हुई (रम्य अङ्गहारोऽगविक्षेपो यस्या. सा) नृत्य करने लगी। वह अपने मुख
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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