SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ ] पष्ठ मर्ग [ नेमिनाथमहाकाव्यम् अप के सौन्दर्य से चन्द्रमा को मात कर रही थी, उसके नितम्बो पर करवनी बधी थी और उसकी दृष्टि विलासपूर्ण थी ।।५।। इसी प्रकार कुछ देवता हर्षातिरेक के कारण आकाश में उछलने लगे, कुछ ने उच्च स्वर मे जयकार किया और कुछ ने गम्भीर सिंहगर्जना की ॥६॥ इस प्रकार विधिज्ञ देव प्रभु के सामने विधिपूर्वक विभिन्न नामो वाला, सुन्दर नृत्य करके आनन्दित हुए । अपना कार्य सफल होने पर कौन प्रसन्न नहीं होते ? ॥६शा अपनी पत्नियो महित इन चार प्रकार के देवो ने बाईसवे तीयंकर के जन्माभिषेक का 'उत्सव सम्पन्न करके अपने को अत्यविक कृतार्थ माना ॥६॥ - तीर्थंकर का स्नानोत्सव पुण्यात्माओ का क्या-क्या कल्याण नही करता ? वह पाप को नष्ट करता है, दुप्कृत को समाप्त करता है, रोगो को दूर करता है, दुर्भाग्य को ढकता है, कल्याण देता है, लक्ष्मी को आकर्षित करता है, पुण्य की रक्षा करता है, दुर्गति के मुंह को आच्छादित करता है और कष्ट से रक्षा करता है ॥६३।। तत्पश्चात् जिनेन्द्र को माता के पास लेटा कर देवनायक इन्द्र, जिसके समूचे पाप नष्ट हो गये थे, अष्टम द्वीप तीर्थ मे जिन-यात्रा की व्यवस्था करके, देवताओ के साथ प्रथम कल्प (स्वर्ग) मे गया ॥६४॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy