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________________ नेमिनाथमहाकाव्यम् ] द्वितीय सर्ग [ ८५ चकवी को सुख देने वाले पूर्ववणित प्रभात को देखकर चतुर मागघो ने राजा को जगाने के लिए चन्दन के समान शीतल ये शब्द कहे ॥ ४८ ॥ 1 राजन् प्रभात के समय सहमा कान्तिहीन हुआ यह चन्द्रमा लक्ष्मी की चचलता को स्पष्ट प्रकट कर रहा है । अत नीद छोडो, जागो, जिनेन्द्र का स्मरण करो तथा प्रात कालीन नित्य कर्म करो ||४६|| महाराज । अव सूर्य की किरणों रूपी वाणो से छिन्न-भिन्न हुआ तुम्हारे शत्रुमण्डल के समान अन्धकार भाग कर दिशाओ मे छिप रहा है । वलवान् द्वारा पीडित कायर को और क्या गति है ॥५०॥ राजन् 1 सिन्दूर, अनार तथा जपा के फूल के समान प्रभा वाले नवोदित सूर्य तथा आपके तेज द्वारा पृथ्वी के समस्त पदार्थों को तुरन्त लाल वना देने पर श्वेत कैलास पर्वत भी कु कुम के समान लाल हो गया है ।। ५१ ।। राजन् । स्वामी का विनाश होने पर पहले उसका परिवार नष्ट हो जाता है और उसका उदय होने पर वह भी अभ्युदय को निश्चित प्राप्त होता है । इसीलिए प्रभात के समय रात्रि और उसका स्वामी चन्द्रमा नष्ट हो गये है और दिन तथा उसका अविपति सूर्य उदित हो गये हैं ॥ ५२ ॥ राजन् । ताजा खिले हुए कमलो के मधु - बिन्दुओ का संग्रह करने का लोभी यह भौंरा, अति प्रेम के कारण कमलवन की गोद मे इस प्रकार गिर रहा है जैसे प्रेमी की दृष्टि प्रेयसी के मुँह पर पड़ती है ॥५३॥ महाराज | यह मदान्ध हाथी रात भर देर तक नीद का सुख लेकर (अव) करवट बदल कर श्रृंखला का शब्द करता हुअा, जाग कर भी, अलमाई आँखो को नही खोल रहा है ||२४|| हे राजेन्द्र | अश्वपाल, तुम्हारे अस्तबल मे हिनहिनाते हुए, गति में वायु को भी मात करने वाले बलशाली घोडो को खाण्ड के समान उज्ज्वल नमक के टुकडे दे रहे हैं || ५५ ॥ 1 t
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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