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________________ ८४ ] द्वितीय सर्ग [ नेमिनाथमहाकाल्यम् ___ जब सूर्य को उदित हुआ देखकर उल्लू आंखे मीच कर कोटरो मे छिप जाते हैं । दूसरो की विभूति को देखने में असमर्थ नीच लोग अपना मुह सदा नीचे झुका कर रखते हैं ।।४०।। उस समय मुनियो ने अपना मन ध्यान में लगाया, सूर्य ने अन्धकार को दूर कर दिया, श्वेत कुमुद बन्द हो गया और सूर्यकान्त मणियाँ चमकने लगी ॥४१॥ ___ जव अपनी प्रेयसी कमलिनी के मुह को उडते हुए भीरो के द्वारा चूमा जाता देखकर सूर्य ने, मानो क्रोध से लाल होकर, अपने कठोर पावो (किरणो) से उसके सिर पर प्रहार किया ।।४२।। जिसमे कमलिनी, सूर्य द्वारा अपने चरणो से मसली जाती हुई भी, पूरी तरह खिल उठी । सच्चा प्रेम वही है, जिसके वशीभूत हुआ मनुष्य दुख को भी सुख ही समझता है ।।४३॥ उस समय सूर्य उदित होकर, अपनी किरणों को रोकने वाले वृक्षो की भी सघन छाया को चारो ओर फैला देता है क्योकि सज्जन वैरियो का भी भला करते हैं।॥४४॥ जब अन्धकार का विनाश करता हुआ भी सूर्य मुनिजनो के साथ समानता प्राप्त नही कर सका । एक (सूर्य) प्रभा-पु ज से युक्त है और दूसरा (मुनि) भाव रूपी शत्रुओ से मुक्त होने के कारण प्रसिद्ध है ॥३॥ ___ उस समय पाप से उत्पन्न मलिनता को शुद्ध करने मे निपुण, पाप और पुण्य का विचार करने में समर्थ तथा योग मे लीन दृष्टि वाले ऋषि, ग्रहो के अतिचार तीन-मन्द आदि गति) को ठीक करने मे कुशल, शुभाशुभ राशियों पर विचार करने में सक्षम तथा ग्रहों के योगो मे अनेक प्रकार से व्यस्त दृष्टि वाले ज्योतिपियो के समान प्रतीत हुए ॥४६॥ जब प्रम्गेदी चकवो से युक्त नदियों में घूमने वाली हमो की नयी स्त्रियां सुगन्धित कमलो की नाल का कलेवा करती हैं ॥४७॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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