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________________ नेमिनाथमहाकाव्यम् ] द्वितीय सर्ग [ ८३ यदि रात्रि को भोगने की थकावट से चन्द्रमा की शोभा प्रभात के समय क्षीण होती है, वह तो उचित है किंतु सप्तर्षियो ने क्या अपराध किया कि वे भी निष्प्रभ हो गये ॥३३॥ जिसमे कान्तिहीन नक्षत्रमाला से युक्त आकाश ने अपनी शोभा से, अमख्य वन्द कुमदो से भरे नीले जल के तालाव की शोभा का अनुकरण किया ॥३४॥ । जव(प्रातःकाल)रात्रि प्राणप्रिय चद्रमा के अस्त होने के तीव्र शोक के कारण नाना नक्षत्रो से युक्त लाल आकाश को इस प्रकार छोड देती है जैसे चांद के समान सु दर नारी अपने मृत पति के घने दुख से वेल-बूटो से सुशोभित (सौभाग्य-सूचक) वढिया लाल.वम्त्र त्याग देती है ॥३५॥ - जब अपने पतियो से प्रेम करने वाली पवित्र साध्वी नारियां, जिनके गहने और वस्त्र सोने से ढीले होगये हैं, मानो सूर्य की किरणो (हाथो) के स्पर्श के भय से, हडवडा कर अपना शरीर ढक लेती हैं ॥३६॥ - जिसमें जैन जिन का, वौद्ध वुद्ध का, शव शिव का, साख्य के अनुयायी कपिल का, ब्राह्मण ब्रह्मा का ध्यान करते हैं, किन्तु नास्तिक किसी देवता का नही ॥३७॥ . जिसमे राजा और नैयायिक अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये, दूसरों द्वारा सस्थापित प्रवल साधन ( सेना, अनुमान ) को अपने प्रयोगो ( कार्यों, अनुमान ) से शान्त करना चाहते हैं ॥३८॥ जब प्रफुल्ल कुमुदो रूपी सुन्दर आँखो वाली रात्रि, जिसमे आकाश नक्षत्र रूपी मोतियो से सुशोभित होता है, दूसरे द्वीप मे गये (अस्त) हुए चन्द्रमा का अनुगमन करती है ( अर्थात् उसके साथ स्वय भी समास हो जाती है ) जैसे नक्षत्र-तुल्य मोतियो से सजे वस्यो वाली तथा विकसित कुमुदो के समान कमनीय आँखो वाली साध्यी नारी परलोक मे गए (मृत) पति का (चिता मे जलकर ) अनुसरण करती है ॥३६॥
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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