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________________ छठा परिच्छेद एकान्तमे कहां स्वामिन् ! वसुदेवका रूप देखकर नगरकी बहु बेटियोंने मान-मर्यादा छोड़ दी है। जो स्त्री उसे एकंबार देख लेती है, वह मानों उसके वश हो जाती है। फिर किसी काममें उसका जी नहीं लगता और वह उसीके पीछे पागल हो जाती है।" महाजनोंके यह वचन सुनकर राजाने कहा :-है महाजनों ! आपलोग धैर्य धारण करें। मैं शीघ्रही इसका कोई उपाय करूँगा।" 1. इस प्रकार महाजनोंको सान्त्वना देकर राजाने उन्हें विदा कर दिया और वसुदेवसे इस बातका जिक्र तक न किया ।, कुछ दिनों के बाद, एकदिन जब वसुदेव उन्हें प्रणाम करने आया तो उन्होंने बड़े प्रेमसे उसे अपने पास बैठाकर कहा-:-प्रियं भाई :: आजकले तुम्हारा शरीर बहुत ही दुर्बल हो गया है। मैं समझताः कि तुम सारा दिन नगरमें घूमा करते हो, इसीलिये , ऐसा हुआ है। तुम अपना सारा समय राजमहला और MPLE: राजसमामें ही बितायाकरोतो अच्छा हो। मैं कुछ ऐसे कलाविलमनुष्योंका प्रबन्ध कर दूंगा, जो तुम्हें
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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