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________________ नेमिनाथ-चरित्र कंसके मित्रोंने, यह सब बातें कंसको बतला कर उग्रसेनको बन्धन - मुक्त कर देनेके लिये उसपर बहुत जोर डाला ; परन्तु पूर्वजन्मके संकल्पके कारण उसका कोई फल न हुआ । कंसके निकट जो कोई राजा उग्रसेनका नाम लेता, उससे भी कंस असन्तुष्ट हो जाता, इसलिये धीरे-धीरे लोगोंने उस विषयकी चर्चा भी करनी बन्द कर दी । 1 उधर सिंहरथको बन्दी बनाने में यथेष्ट सहायता करनेके कारण जरासन्धने समुद्रविजयको भी खूब सम्मानित किया । वह जरासन्धका आतिथ्य ग्रहण कर अपने नगरको लौट गया। इस विजयसे वसुदेवकी अच्छी ख्याति हो गयी । अब वह शैर्यपुरमें जब- जब घूमने निकलता, तव तव नगरकी ललनाऍ सब काम छोड़कर उसे देखनेके लिये दौड़ पड़तीं और उसका अलौकिक रूप देखकर उसपर मुग्ध हो जातीं-मन-हीमन अपना तनमन उसपर न्यौछावर कर देतीं । कुछदिनोंके बाद चारों ओर इसके लिये कानाफूसी होने लगी । एक दिन नगरके महाजनोंने आकर राजासे १२६ - 1
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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