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________________ wwwna १२८ नेमिनाथ-चरित्र कलाकी शिक्षा भी देंगे और अवकाशके समय तुम्हारा मनोरंजन भी करेंगे।" . . · वसुदेव बहुत ही नम्र और विवेकी था। उसने तुरन्त यह बात मान ली और दूसरे दिनसे सङ्गीत, नृत्य और विद्या-कलाकी चर्चा में अपना समय बिताने लगा। अपनी सरलताके कारण वह बिलकुल न समझ सका, कि उसपर यह प्रतिबन्ध क्यों लगाया गया है। परन्तु यह रहस्य अधिक दिनोंतक छिपा न रह सका। महलके कई दास-दासियोंको महाजनोंकी शिकायतका हाल मालूम था। और उन्हींसे इस गुप्त भेदका भंडाफोड़ हो गया। बात यह हुई कि एक दिन कुब्जा नामक एक दासी कुछ गन्ध-द्रव्य लिये आ रही थी। उस समय वसुदेवने उसे रोक कर पूछा, कि-"यह गन्ध-द्रव्य किसके लिये लायी, हो ? कुन्जाने उत्तर दिया :- "हे कुमार! यह गन्धं शिवादेवीने सुमुद्रविजयके लिये भेजा है।" '. "तब तो यह मेरे भी काम आयगा ।" यह कहते हुए. दिल्लगीके साथ वसुदेवने उसे छीन लिया। छीनते
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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