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________________ ६३ तीसरा परिच्छेद उन्हें जब यह मालूम हुआ कि रत्नमालाके भावी पतिने ही संयोगवश वहाँ पहुँच कर उसकी रक्षा की है, तब उनके आनन्दका चारापार न रहा। उन्होंने उसी समय अपराजितके साथ रत्नमालाका व्याह कर दिया। सूरकान्त पर राजा अमृतसेनको बड़ाही क्रोध आया, परन्तु अपराजितके कहनेसे उन्होंने उसका अपराध क्षमा कर दिया। इसके बाद राजा अमृतसेनने अपराजितसे अपने नगर चलने की प्रार्थना की, किन्तु अपराजितने इस बातको अस्वीकार करते हुए कहा :-"इस समय आप मुझे क्षमा करिये। अपने नगर पहुँचने पर मैं आपको सूचना दूंगा, तब आपरत्नमालाको मेरे पास पहुँचा दीजियेगा। भविष्यमें यदि कभी इस तरफ आऊँगा, तो आपका आतिथ्य अवश्य ग्रहण करूँगा।" इतना कह राजकुमारने राजा अमृतसेन, रत्नमाला और उसकी मातासे विदा ग्रहण की। विद्याधर सूरकान्त ने भी उसे प्रेम पूर्वक विदा किया। उसने चलते समय अपराजितको पूर्वोक्त मणि और जड़ी-बूटी तथा मन्त्री-पुत्र को वेष बदलने की गुटिका अपनी ओरसे भेट दीं।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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