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________________ नेमिनाथ चरित्र थी। इसलिये मैं इसके टुकड़े कर अग्निकुण्डमें डाल देनेकी तैयारी कर रहा था। इतनेही में यहाँ आकर आपंने इसकी प्राण-रक्षा की, साथ ही मुझे भी नरकमें जानेसे बचाया। सच पूछिये तो आपने हम दोनों पर बड़ाही उपकार किया है। हे महाभाग ! यही मेरा और इस सुन्दरीका परिचय है। यदि आपत्ति न हो तो आप भी अब अपना परिचय देनेकी कृपा करें।" विद्याधर की यह प्रार्थना सुनकर राजकुमारने एक मतलब भरी दृष्टिसे मन्त्री-पुत्रकी ओर देखा । मन्त्रीपुत्रने उनका तात्पर्य समझ कर विद्याधरको उनके नाम और कुलादिकका परिचय दिया। राजकुमारका प्रकृत परिचय पाकर रत्नमाला भी आनन्द से पुलकित हो उठी। उसे ऐसा मालूम होने लगा मानो परमात्माने ही उसपर दया कर उसके इष्टको यहाँ भेज दिया है। वह इसके लिये उसे अनेकानेक धन्यवाद देने लगी। इसी समय रत्नमालाको खोजते हुए उसकी माता कीतिमती और उसके पिताअमृतसेन भी वहाँ आ पहुंचे। उनके पूछने पर मन्त्री-पुत्रने उन्हें साराहाल कह सुनाया।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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