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________________ ७८ नेमिनाथ चरित्र मालूम होते थे, फिर भी पूर्वजन्मके स्नेहानुभावके कारण प्रीतिमती उन्हें देखते ही उनपर अनुरक्त हो गयी। इसके बाद यथाविधि वाद-विवाद आरम्भ हुआ। प्रीति‘मतीने पूर्वपक्ष लिया, परन्तु अपराजित इससे विचलित न हुए। उन्होंने उसके प्रश्नोंका उत्तर देते हुए इतनी सुन्दरतासे उसकी युक्तियोंका खण्डन किया, कि वह अवाक् बन गयी। उसने उसी क्षण अपनी पराजय स्वीकार कर राजकुमारके गलेमें जयमाल पहना दी। __परन्तु राजकुमारकी यह विजय देखकर समस्त भूचर और खेचर राजा ईर्ष्याग्निसे जल उठे। वे कहने लगे :"क्या हमारे रहते हुए यह दरिद्री इस राजकन्याको ले जायगा? हम यह कदापि न होने देंगे। इतना कह वे सब शस्त्रास्त्रसे सजित हो राजकुमार पर आक्रमण करने लगे। उनकी सेना भी इधर-उधर दौड़धूप करने लगी। राजकुमार इस युद्ध के लिये, तैयार न थे किन्तु ज्योंही राजाओंने रंग बदला, त्योंही वे एक हाथीके सवारको मारकर उसपर चढ़ बैठे और उसके हौदेमें जो शखाख रक्खे थे, उन्हींको लेकर वे युद्ध करने लगे। कुछ देर
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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