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________________ तोसरा परिच्छद मैं श्रीपेण नामक विद्याधरका पुत्र हूँ। मेरा नाम सुरकान्त है। यह स्त्री स्थनूपुर नगरके राजा अमृतसेन की कन्या है। इसका नाम रत्नमाला है। एकबार एक ज्ञानीने वतलाया था कि हरिनन्दी राजाके अपराजित नामक राजकुमारसे इसका व्याह होगा। तबसे वह मन-ही-मन उसीको प्रेम करती थी। दूसरे की ओर आंख उठाकर देखती तक न थी। संयोगवश एकवार मैंने इसे देख लिया। मुझे इच्छा हुई कि इससे व्याह करना चाहिये,. इसलिये मैंने इससे पाणिग्रहण की प्रार्थना की, किन्तु इसने मेरी प्रार्थनाको ठुकराते हुए कहा :-"या तो अपराजित • ही मेरा पाणिग्रहण करेंगे या अग्निदेव ही अपनी गोदमें मुझे स्थान देंगे। इन दो के सिवा मेरे शरीरकी तीसरी गति नहीं हो सकती।" इसका यह उत्तर सुनकर मुझे क्रोधआ गया । और मैं यहाँ इस मन्दिरमें आकर दुःसाध्य विद्या की साधना करने लगा। इसके बाद मैंने फिर कई बार इससे प्रार्थना की, किन्तु जब इसने मेरी एक न सुनी, तव में इसका हरण कर इसे यहाँ उठा लाया । मैं कामान्य हो गया था, मेरी विचार शक्ति नष्ट हो गयी.
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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