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________________ तीसरा परिच्छेद "हे मित्र ! यदि यह अश्व हमलोगोंको यहाँ न भगालाये होते तो यह सुन्दर स्थान हमलोग कसे देख पाते। यदि हमलोग इस स्थानमें आनेके लिये मातापिताकी आज्ञा लेने जाते, तो मेरा विश्वास है कि वे भी इसके लिये हमें कदापि आज्ञा न देते !" __मन्त्री-पुत्रने कहा :-"हाँ, राजकुमार ! आपका कहना बिलकुल ठीक है ! वास्तवमें यह स्थान बहुतही मनोरम और दर्शनीय है। यहाँ आतेही मानो सारी थकावट दूर हो गयी। मुझे तो इच्छा होती है कि मैं यहीं पड़ा रहूँ और नगर लौटनेका नाम तक न लूँ।" जिस समय राजकुमार और मन्त्री-पुत्र में इसी तरहकी बातचात हो रही थी, उसी समय एक अपरिचित पुरुष राजकुमारके पास आकर खड़ा हो गया। उसका समूचा शरीर भयसे कांप रहा था। राजकुमारको देखते ही वह गिड़गिड़ा कर उनसे अपनी रक्षाकी प्रार्थना करने लगा। राजकुमारने उसे आश्वासन देकर उससे शान्त होनेको कहा । यह देखकर मन्त्री-पुत्रने राजकुमारसे कहा:-"हे मित्र ! इसकी रक्षा करनेके पहले हमें एक बार विचार
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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