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________________ ५२ नेमिनाथ चरित्र कर लेना चाहिये । यदि यह अन्यान्यी होतो इसकी रक्षा करना उचित नहीं ।" अपराजितने कहा :-- "यह अन्यायी हो या न्यायी,. हमें इसका विचार न करना चाहिये । शरणागतकी रक्षा करना क्षत्रियोंका परम धर्म है ।" राजकुमारकी यह बात अभी पूरी भी न होने पायी थी कि " मारो मारो " पुकारते और उसका पीछा करते हुए कई राज कर्मचारी वहाँ आ पहुँचे । उनके हाथमें नंगी तलवारें थी । उन्होंने राजकुमार और मन्त्री- पुत्रसे कहा : - " आपलोग जरा दूर हट जाइये । हम इस डाकू - सरदारको मारना चाहते हैं । इसने हमारे समूचे नगरको लूटकर तवाह कर डाला है !" 1 उनके यह वचन सुनकर राजकुमारने हॅसते हुए कहा : – “यह हमारी शरण में आया है । अब इसे इन्द्र भी नहीं मार सकते | आप लोगोंका तो कहना ही क्या है ?" यह सुनकर राजकर्मचारी आग बबूला हो उठे। वे अपनी तलवार खींचकर उस डाकू सरदारंकी ओर झपट 1
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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