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________________ -AVA नेमिनाथ चरित्र स्वर्गसे च्युत होनेपर चित्रगतिके जीवने उसके उदरसे पुत्र रूपमें जन्म लिया । राजाने बड़े प्रेमसे उसका जन्मोत्सव मनाया और उसका नाम अपराजित रक्खा। बड़े होनेपर उन्होंने निपुण शिक्षा गुरुओं द्वारा उसे विवध विद्या और कलाओंकी शिक्षा दिलायी। क्रमशः वह किशोरावस्था अतिक्रमण कर यौवनकी वसन्त-वाटिकामें विचरण करने लगा। राजकुमार अपराजितकी मन्त्री-पुत्र चिमलबोधसे घनिष्ठ मित्रता थी, अतः एक दिन वे दोनों क्रीड़ा करनेके लिये घोड़ेपर सवार हो नगरके बाहर निकल गये । दुर्भाग्यवश उनके घोड़े अशिक्षित थे, इसलिये वे जंगलकी ओर भाग गये। अन्तमें, जब वे भागते-भागते थक गये, तब एक स्थानमें रुक गये । राजकुमार और मन्त्री-पुत्र भी श्रान्त और क्लान्त हो उठे थे, इसलिये शीघ्रही वे अपनेअपने घोड़े परसे उतर पड़े और एक वृक्षके नीचे बैठ कर विश्राम करने लगे। जब वे कुछ स्वस्थ हुए तब उनका ध्यान आसपासके रमणीय दृश्योंकी ओर आकर्षित हुआ। राजकुमारने उन दृश्योंको देखकर विमलबोधसे कहा:
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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