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________________ RAM चौदहवाँ परिच्छेद ६०५ उन्हींके केशोंसे वह टोकरी भर, उन्हें सत्यभामाके पास वापस भेज दिया। ___ दासियोंकी यह दुरवस्था देखकर सत्यभामाको वड़ा ही क्रोध आया। उसने दासियोंसे पूछा :--"तुम्हारी ऐसी अवस्था किसने की ?" दासियोंने झनक कर कहा :-"आप यह प्रश्न ही क्यों करती हैं ? जैसा स्वामी होता है, वैसा ही उसका परिवार भी होता है ! सत्यभामाने इससे भ्रमित होकर इस वार कई हजामोंको रुक्मिणीके केश लानेका आदेश दिया । तदनुसार वे भी रुक्मिणीके पास पहुंचे ; पर मायामुनिने उनकी भी वही गति की जो दासियोंकी की थी। दासियोंके तो उन्होंने केवल केश ही गुंड़े थे, परन्तु अबकी बार नाइयोंके तो उन्होंने शिरका चमड़ा तक छील लिया ! दासियोंकी तरह यह हजाम भी रोते कलपते सत्यभामाके पास पहुंचे। सत्यभामा इसवार और भी कद्ध हुई। उसने कृष्णके पास जाकर कहा :-मैंने
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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