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________________ ६०६ नेमिनाथ चरित्र आपके सामने केश देनेकी बाजी लगायी थी । आज वह दिन आ पहुँचा है । यदि रुक्मिणीके पुत्रका विवाह होता, वह आज मुझे छोड़ न देती । अब आप उसे । बुलाकर मुझे शीघ्र ही उसके केश दिलाइये !" कृष्णने हँसकर कहा :- "प्यारी ! मैं उसके केश क्या दिलाऊँ ? तुमने तो उसके बदले पहलेही से अपना शिर मुंडवा लिया है !" सत्यभामाने कहा :- "आज मुझे ऐसी दिल्लगियाँ अच्छी नहीं लगतीं । आप शीघ्र ही मुझे रुक्मिणीके केश दिलाइये !" कृष्णने कहा :- "अच्छा, मैं बलरामको तुम्हारे -साथ भेजता हूँ । उनके साथ जाकर तुम स्वयं रुक्मिणीके केश ले आओ !” कृष्णके आदेशानुसार बलराम सत्यभामाके साथ रुक्मिणीके वासस्थानमें गये । वहाँ प्रद्युम्नने अपनी विद्यासे कृष्णका एक रूप उत्पन्न किया । बलराम उन्हें - देखते ही लजित हो उठे और बिना कुछ कहे सुने ही चुपचाप पूर्व स्थानमें लौट आये । वहाँ भी कृष्णको
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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