SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नेमिनाथ-चरित्र कालकुमारको समीप आया जानकर राम और कृष्णके अधिष्ठायक देवताओंको यादवोंकी रक्षा करनेके लिये वाध्य होना पड़ा। इसलिये उन्होंने अपनी मायासे एक, पर्वत खड़ा कर, उसमें 'दावानल और एक बड़ीसी चिताका दृश्य उपस्थित किया और उस चिताके पास एक रोती हुई स्त्रीको बैठा दिया। इस मायाविनी रमणीको देखते ही कालकुमारने पूछा:-“हे भद्रे! तुम कौन हो और इस प्रकार क्यों रुदन कर रही हो?" .. उस ,रमणीने दोनों नेत्रोंसे अश्रुधारा बहाते हुए. कहा :-"मैं राम और कृष्णकी बहिन हूँ। जरासन्धके भयसे समस्त यादव इस ओरको भाग आये थे। किन्तु, उन्होंने जब सुना कि कालकुमार अपनी विशाल सेनाके साथ समीप आ पहुंचा है, तब वे भयभीत होकर इस दावानलमें घुस गये। ; मैं समझती हूँ कि वे सब इसीमें जल मरे होंगे। राम, कृष्ण तथा समुद्रविजय आदिक दशाह भी इससे बड़ी चिन्तामें पड़ गये। उन्हें अपनी रक्षाका कोई उपाय न सूझ पड़ा, इसलिये अभी कुछ ही न पहले उन्होंने भी इस , चितामें प्रवेश किया है।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy