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________________ बारहवों परिच्छेद ५०१ हे भद्र ! मैं उन्हींके दुःखसे दुःखित हो रही हूँ और इस चितामें प्रवेश कर अपना प्राण देने जा रही हूँ।" इतना कह, वह मायाविनी स्त्री उस चितामें कूद पड़ी। उसकी यह हरकत देख, कालकुमारको अपनी प्रतिज्ञाका स्मरण हो आया। उसने अपने पिता तथा बहिनके सामने यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं यादवोंको अग्नि या समुद्रसेभी खींचकर मारूँगा, इसलिये उसने मनमें कहा :-"अब अग्निप्रवेश किये बिना काम नहीं चल सकता। किसी तरह हो, मैं अपनी प्रतिज्ञा अवश्य पूर्ण करूंगा।" .. इतना कह कालकुमार अपनी तलवार खींचकर उस चितामें घुस पड़ा। उसके समस्त संगी साथी भी देवताओंकी मायासे मोहित हो रहे थे, इसलिये उन्होंने भी उसे न रोका और वह उनके सामने ही उस चितामें जलकर भस्म हो गया ।, इतनेहीमें सूर्यास्त होकर रात हो गयी, इसलिये यवन सहदेवने सेना सहित वहींपर वास किया। किन्तु दूसरे दिन सुबह उठकर उन्होंने देखा, तो न कहीं वह पर्वत था, न कहीं वह चिता।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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