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________________ नेमिनाथ चरित्र स्वामी हो गया ? जरासन्धको हमलोग किसी तरह अपना स्वामी नहीं मान सकते। तुम्हारे स्वामीने जो सन्देश भेजा है, उससे मालूम होता है, कि वह भी अपनी वही गति कराना चाहता है, जो कंसकी हुई है। इससे अधिक हमें कुछ नहीं कहना है । तुम्हारी जो इच्छा हो, उससे जाकर कह सकते हो! ____यह सुनकर सोम और भी क्रुद्ध हो उठा। उसने समुद्रविजयसे कहा :- "हे दशाई ! तुम्हारा यह पुत्र कुलाङ्गार है। इसकी ऐसी धृष्टता कदापि क्षम्य नहीं हो सकती। तुम इसे हमारे हाथोंमें सौंप दो, फिर यह अपने आप ठीक हो जायगा।" ____ यह सुनकर अनाधृष्टिने लाल लाल आंख निकाल कर कहा :-"पितासे वारंवार दोनों पुत्रोंको मांगते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती ? यदि अपने जामाताकी मृत्युसे जरासन्धको दुःख हुआ है, तो क्या हमें अपने छ। भाइयोंके मरनेसे दुःख नहीं हुआ ? तुम्हारी इस धृष्टताको हमलोग कदापि क्षमा नहीं करेंगे।" राजा समुद्रविजयने भी इसी प्रकार सोमकी बहुत
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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