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________________ ४९७ बारहवों परिच्छेद भर्त्सना की। इससे सोम क्रुद्ध होकर राजगृहीको वापस चला गया। इसमें कोई सन्देह नहीं कि उसकी माँग बहुत ही अनुचित थी और वह कभी भी पूरी न की जा सकती थी। इस अवस्था में समुद्रविजयने उसे जो उत्तर दिया था, वह सर्वथा उचित ही था। फिर भी इस विचारसे वे न्याकुल हो उठे, कि जरासन्धको इस रसे सन्तोष न होगा और यदि उसने हमलोगोंपर क्रमण कर दिया, तो उससे लोहा लेना भी कठिन जायगा। । इन्हीं विचारोंके कारण राजा समुद्रविजय चिन्तामें पड़ गये। अन्तमें उन्होंने क्रोष्टुकी नामक ज्योतिषीको बुलाकर पूछा :- हे भद्र ! तीन खण्डके स्वामी राजा जरासन्धसे हमारा विग्रह उपस्थित हो गया है। कृपया बतलाइये कि अब क्या होगा ?" ज्योतिषीने कहा :-"कुछ ही दिनोंके अन्दर यह महावलवन्त राम और कृष्ण जरासन्धको मारकर तीनों खण्डके स्वामी होंगे। परन्तु आपलोगोंका अब यहाँ रहना अच्छा नहीं। आप अपने समस्त वन्धु-बार..
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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