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________________ नेमिनाथ-चरित्र कंसको मारने वाले इन राम और कृष्ण नामक क्षुद्र बालकोंको हमारे हाथोंमें सौंप दीजिये। देवकीका सातवॉ गर्भ तो कंसको देनेके लिये आपलोग पहलेहीसे बाध्य थे। खैर, तब न सही, अब उसे दे दीजिये । बलरामने कृष्णकी रक्षा की है, इसलिये वह भी अपराधी है !" समुद्रविजयने उत्तर दिया :-"जरासन्ध हमारे मालिक हैं, परन्तु उनकी अनुचित आज्ञा हमलोग कैसे पालन कर सकते हैं ? वसुदेवने अपनी सरलताके कारण देवकीके छः गर्म कंसको सौंप दिये, सो उसने कोई अच्छा कार्य नहीं किया। बलराम और श्रीकृष्णने कंसको मारकर अपने उन्हीं भाइयोंका बदला लिया है, इसलिये वे अपराधी नहीं कहे जा सकते। यदि वसुदेव बाल्यावस्थासे स्वेच्छाचारी न होता और हमारी सम्मतिसे सब काम करता रहता, तो उसके छः पुत्र कंसके हाथसे कभी न मारे गये होते। अब तो यह वलराम और कृष्ण हमें प्राणसे भी अधिक प्रिय हैं। इनका प्राण लेनेके लिये इनकी याचना करना घोर अन्याय और
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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