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________________ दसवाँ परिच्छेद ४३१ प्रस्थान किया । संयोगवश मार्ग में नारद मुनि मिल गये । उन्होंने उनसे पूछा :- "तुम दोनों जन कहाँ जा रहे हो ?” वसुदेवने कहा :- " कंसकी इच्छानुसार मैं देवक राजाकी देवकी नामक कन्यासे विवाह करने जा रहा हूँ ।" नारदने कहा :- "कंसने इस काममें मध्यस्थ चनकर बहुतही उत्तम कार्य किया है । है वसुदेव ! जिस प्रकार पुरुषोंमें तुम सर्वश्रेष्ठ हो, उसी प्रकार स्त्रियोंमें देवकी शिरमौर है। मालूम होता है, कि विधाताने यह अद्भुत जोड़ मिलानेके लिये ही तुम दोनोंको उत्पन्न किया था । यदि तुम देवकीसे विवाह कर लोगे, तो उसके सामने तुम्हें विद्याधरियाँ भी तुच्छ मालूम देने लगेंगी। इस विवाह में कोई विघ्न बाधा न हो, इसलिये मैं अभी देवकीके पास जाता हूँ और उसे तुम्हारे गुण सुनाकर, तुम्हींसे विवाह करनेके लिये उसे समझा आता हूँ ।" इतना कह नारद: उसी समय आकाश मार्ग द्वारा
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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