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________________ 1 २४३० नेमिनाथ चरित्र. नहीं रहते । नारदकी बाल्यावस्थामें जृंभक देवताओंने जिस अशोककी छाया स्थिर कर दी थी, वह उस समयसे पृथ्वीपर छाया वृक्षके नामसे सम्बोधित किया जाता है ।" यह वृत्तान्त सुनकर कंस चकित हो गया । तदनन्तर समुद्रविजयके यहाँ कुछकाल रहनेके बाद कंस अपनी राजधानी मथुरा नगरीको चला गया था । एकवार उसने वहाँसे वसुदेवको मथुरा आनेके लिये निमन्त्रित किया । इसलिये वसुदेव समुद्रविजयकी आज्ञा प्राप्तकर वहाँ गये । कंस और उसकी पत्नी जीवयशाने उनका चड़ाही आदर सत्कार किया। इसके बाद एकदिन मौका देखकर कंसने कहा :- "हे मित्र ! मृत्तिकावती नामक नगरीमें मेरे काका देवक राज करते हैं। उनके देवकी नामक एक कन्या है । आप उससे विवाह कर लीजिये । मैं आपका अनुचर हूँ, इसलिये मुझे विश्वास है कि आप मेरी यह प्रार्थना अमान्य न करेंगे ।" वसुदेवने कंसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली, इसलिये उनको अपने साथ लेकर कंसने मृत्तिकावती नगरीके लिये
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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