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________________ ४२३ दसवाँ परिच्छेद की, तो दासीने उससे सारा हाल वतला दिया। बालकको देखकर सेठका पितृ-हृदय द्रवित हो उठा, इसलिये उसने दासीके हाथसे उसे ले लिया। इसके बाद गुप्तरूपसे दूसरे मकानमें ले जाकर उसने उसे बड़ा किया और उसका नाम गंगदत्त रक्खा । ललितको अपने इस भाईका हाल मालूम था, इसलिये वह भी कभी-कभी उस मकानमें जाकर उसे खेलाया करता था । एकदिन वसन्तोत्सबके समय उसने अपने पितासे कहा :-'हे पिताजी ! वसन्तोत्सवक दिन गंगदत्त भी हमलोगोंके साथ भोजन करे तो वड़ाही अच्छा हो।" ___ पिताने कहा :-हॉ अच्छा तो है, किन्तु तुम्हारी माता उसे देख लेगी तो बड़ा ही अनर्थ कर डालेगी।" ललितने कहा :-'अच्छा, मैं ऐसा प्रवन्ध करूँगा, जिससे माताजी उसे देख न सकेंगी।" पुत्रकी यह बात सुनकर पिताने उसे इस कार्यके लिये अनुमति दे दी। भोजनका समय होने पर ललितने गंगदत्तको एक पर्देके पीछे बैठा दिया और खुद. पिता
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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