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________________ नेमिनाथ-चरित्र पुत्र उसके बाहर बैठकर भोजन करने लगे। भोजन करते समय बीच बीचमें वे अपनी थालीसे सानेकी चीजें उठा उठाकर चुपचाप गंगदत्तको भी देते जाते थे। इतने ही में अचानक हलासे पर्दा उड़ा तो गंगदत्त पर उसकी माताकी दृष्टि पड़ गयी। उसे देखते ही उसके बदनमें मानो आगसी लग गयी। उसने गंगदत्तके केश पकड़ कर उसे खूब मारनेके बाद घरसे बाहर निकाल कर वह उसे एक मोरी में ढकेल आयी। महामति सेठ और ललितको इससे बड़ाही दुःख हुआ। उन्होंने चुपचाप उसे मोरीसे निकाल कर नहलाया धुलाया और अनेक प्रकारसे उसे सान्त्वना दी। इसके बाद वे फिर उसे उसी मकानमें चुपचाप रख आये। इस घटनाके कुछ दिन बाद वहाँपर कई साधुओंका आगमन हुआ। सेठने उनका आदर सत्कार कर, उनसे गंगदत्त और उसकी माताका हाल निवेदन करके पूछा:- हे भगवन् ! गंगदत्तकी माता उससे इतना वैर क्यों रखती है ?"
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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