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________________ ३९८ नेमिनाथ परित्र गये, यह मैं नहीं कह सकती, किन्तु इनके नल होने में कोई सन्देह नहीं किया जा सकता। इस सूर्यपाकके अतिरिक्त उनकी एक परीक्षा और भी ऐसी है, जिससे मैं तुरन्त उनको पहचान सकती हूँ। मेरे किसी भी अंगमें उनका हाथ या उंगली स्पर्श होते ही मेरा समूचा - शरीर रोमाश्चित हो उठता है । आप ऐसा प्रबन्ध करिये कि तिलक करनेके मिस वे मेरे ललाटको या मेरे किसी दूसरे अंगको एक उंगली द्वारा स्पर्श करें। यदि वे नल होंगे, तो मैं उसी समय उन्हें पहचान लूँगी ।" दमयन्तीका यह वचन सुनकर भीमरथने उस कुब्जसे पूछा :-- “ भाई, सच कहो, क्या तुम नल हो ?" कुब्जने अपने दोनों कानों पर हाथ रखते हुए कहा :- "भगवान् ! भगवान् ! आप यह क्या कहते हैं ? देवता स्वरूप वे नल कहाँ और बीभत्स रूप में कहाँ ? मैं नहीं समझ सकता, कि मेरे और उनके रूपमें जमीन आसमानका अन्तर होने पर भी आप लोग ऐसा * सन्देह क्यों कर रहे हैं ?" भीमरथने कहा :- "अच्छा भाई तुम नल नहीं हो
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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