SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "आठवाँ परिच्छेद थी, इसलिये उसने उसके लिये तो इन्कार कर दिया, परन्तु इसके साथ ही उसकी दृष्टि दमयन्ती पर जा पड़ी, जिससे उसको इतना आनन्द हुआ, मानो उसे कुबेरंका भण्डार.मिल गया हो। वह दमयन्तीको भली भाँति पहचानता था। इसलिये उसे पहचाननेमें जरा भी दिक्कत न हुई, फिर भी उसने उसे दो तीन बार देखकर भली भाँति निश्चय कर लिया। जब उसे मालूम हो गया कि यही दमयन्ती है, तब उसने पुलकित हृदयसे दमयन्तीको प्रणाम करके कहा :- "हे देवि ! तुम्हारी यह क्या अवस्था हो रही है ! खैर, तुम्हारा पता लग गया, यह भी कम सौभाग्यकी बात नहीं है। अब तुम्हारे माता-पिता और स्वजन स्नेहियोंकी चिन्ता दूर हो 'जायेगी। “इतना कह, हरिमित्रने दमयन्तीको अपने आगमनको सब हाल कह सुनाया। इसके बाद वह रानी चन्द्रयशाके पास दौड़ गया और उन्हें यह शुभ संवाद -कह सुनायी । दमयन्ती उनकी दानशालामें रहती थी,चे उसे रोज देखती थी, फिर भी उसे पहचानते हुए
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy