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________________ छठा परिच्छेद २०१ हो गयी और मैं बहुत निराश हो गयी। इतनेहीमें मुझे मेरी धाय माता मिल गयी। मैंने उसे आपकी खोज करनेका काम सौंपा और वही आपको पर्वतसे गिरते समय गोचकर मेरे पास ले आयी है। हे नाथ ! इस समय जहाँ हम लोग खड़े हैं। और जहाँ हमलोगोंका यहं पुनर्मिलन हुआ है, वह स्थान पञ्चनद हीमन्त तीर्थके नामसे प्रसिद्ध है। इसका नाम तो आपने पहले भी सुना होगा। वेगवतीकी यह बातें सुनकर वसुदेवको परम सन्तोष हुआ। उन्होंने वेगवतीको वारंवार गले लगाकर अपने आन्तरिक प्रेमका परिचय दिया। इसके बाद वे दोनों जन एक तापसके आश्रममें गये। और उसकी आज्ञा प्राप्त कर वहीं पर निवास करने लगे। ___ एकदिन वसुदेव और चेगवती नदीके तटपर बैठे हुए प्रकृतिके अपूर्व दृश्योंका रसास्वादन कर रहे थे। उसी समय उन्हें नदीमें एक कन्या दिखायी दी, जो नागपाससे बँधी हुई थी और उन्हीं की ओर बहती हुई चली आ रही थी। यह देख, वेगवतीने वसुदेवसे उसे
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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