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________________ २०२ नेमिनाथ चरित्र बचानेकी प्रार्थना की, अतः वे उसे बाहर निकाल लाये और बन्धनमुक्त कर उसकी मूर्छा दूर की । स्वस्थ होनेपर कन्याने तीन प्रदक्षिणाएँ देकर वसुदेवसे कहा :"हे महापुरुष ! आपके प्रभावसे मेरी विद्याएँ सिद्ध हुई हैं, इसलिये मैं आपको अनेकानेक धन्यवाद देती हूँ। शायद आप मेरा परिचय जाननेके लिये उत्सुकं होंगे, इसलिये मैं आपको अपना वृत्तान्त सुनाती हूँ, सुनिये वैताब्य पर्वतकी दक्षिण श्रेणीमें गगनवल्लभपुर नामक एक नगर था। उसमें नमिवंशोत्पन्न विद्युदंष्ट्र नामक एक राजा राज्य करता था। एकबार वह पश्चिम महा विदेहमें गया। वहॉपर एक प्रतिमाघारी मुनिको देखकर उसने अपने विद्याधरोंसे कहा:-"यह मुनि तो बड़ा ही उपद्रची मालूम होता है, इसलिये इसे वरुण पर्वतपर ले जाकर मार डालो। उसकी यह बात सुनकर विद्याधरोंने उसे बहुत मारा, किन्तु शुक्लध्यानके योगसे उस मुनिको केवल ज्ञान उत्पन्न हो गया । फलतः केवल ज्ञानकी महिमा करनेके लिये धरणेन्द्र वहाँपर उपस्थित हुए। उन्होंने मुनि के विरोधियों पर क्रोध कर उन्हें विद्याभ्रष्ट बना दिया।
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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