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________________ छठा परिच्छेद १९१ राजाका नाम चित्राङ्ग और रानीका नाम अंगारवती है। उन्हींकी मैं कन्या हूँ। मेरा नाम वेगवती है। मेरे एक भाई भी है, जिसका नाम मानसवेग है। मानसवेगकोराज्यभार सौंपकर मेरे पिताने दीक्षा लेली है । मेरा भाई दुराचारी है और उसीने आपकी स्त्रीका हरण किया है। उसने मेरे द्वारा उसे फुसलानेकी बड़ी चेष्टा की, किन्तु उसने एक न सुनी। उलटे उसीने मुझको अपनी सखी बनाकर आपको लिवा लानेके लिये यहाँपर भेजा। तदनुसार मैं यहाँ आयी, किन्तु आपको देखकर मैं आपपर मुग्ध हो गयी, इसलिये मैंने सोमश्रीका सन्देश आपसे न कहकर, उसका रूप धारणकर छलपूर्वक आपसे व्याह कर लिया है। हे नाथ ! यही सच्चा वृत्तान्त है। मुझे आशा है कि आप मेरी यह धृष्टता क्षमा करेंगे।" ___ वसुदेवने अब और कोई उपाय न देख, उसका अपराध क्षमा कर दिया। सुबह वेगवतीको देखकर लोगोंको बड़ा आश्चर्य हुआ। वसुदेवकी आज्ञासे उसने सोमश्रीके हरणका समाचार लोगोंको कह सुनाया। एकदिन वसुदेव जव अपनी इस पत्नीके साथ सो रहे
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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