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________________ .१९० नेमिनाथ-परित्र ____ कुमारीने कहा :-हे प्राणेश ! आपके कल्याणार्थ मैंने एक व्रत लिया था। जिसमें तीन दिन तक मौन रहकर वह व्रत पूर्ण किया है। अब उसकी पूर्णाहुतिमें केवल एक ही बातकी कसर है। वह यह कि, आपको देवीका पूजन कर मुझसे पुनः पाणिग्रहण करना पड़ेगा। ऐसा करनेसे हमलोगोंका जीवन और भी प्रेममय बन जायगा।" ___ उसकी यह बात सुनकर वसुदेव बहुतही प्रसन्न हुए । उन्होंने उसके कथनानुसार फिरसे उसका पाणिग्रहण भी किया। यह सब काम निपटनेके बाद उसने देवीका प्रसाद कह कर वसुदेवको मदिरा भी पिला दी। इससे वसुदेवने उन्मत्त हो वह रात आनन्दपूर्वक व्यतीत की। सुबह नींद खुलनेपर वसुदेवने देखा, कि सोमश्रीके बदले उनकी शैय्यापर कोई दूसरी ही सुन्दरी लेटी हुई है। यह देख, उन्होंने उससे पूछा :- "हे सुन्दरि ! तुम कौन हो ? मेरी सोमश्री कहाँ है।" ___उस सुन्दरीने मुस्कुरा कर कहा :-"प्राणनाथ ! दक्षिण श्रेणीमें सुवर्णाभ नामक एक नगर है। वहाँके
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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