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________________ १९२ नेमिनाथ चरित्र I थे, तब उन्हें ऐसा मालूम हुआ, मानो मानसवेग खेचर उन्हें उठाये लिया जा रहा है। शीघ्र ही उन्होंने सावधान होकर उसके एक ऐसा मुक्का जमाया, कि वह उसकी चोटसे तिलमिला उठा और वसुदेवको उसने गंगाकी धारामें फेंक दिया । संयोग वश वसुदेव चण्डवेग नामक एक विद्याधरके कन्धेपर जा गिरे। उस समय वह विद्याधर गंगा में खड़ा खड़ा कोई विद्या सिद्ध कर रहा था। वसुदेव ज्यों हीं उसके कन्धेपर गिरे त्यों हीं वह विद्या सिद्ध हो गयी । यह देख कर उस विद्याधरने कहा :"हे महात्मन् ! आप मेरी विद्यासिद्धिमें कारणरूप हुए हैं, इसलिये कहिये, मैं अब आपकी क्या सेवा करूँ ? आपको क्या हूँ ?" कुमारने कहा :- हे विद्याधर ! यदि तुम वास्तव में प्रसन्न हो और मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो, मुझे आकाश - गामिनी विद्या दो। उसकी मुझे बड़ी जरूरत है। विद्याधर "तथास्तु" कह, अपने वासस्थानको चला गया । पश्चात् वसुदेव कनखल पुरके द्वारके निकट साधना कर उस विद्याको सिद्ध करने लगे। उसी समय कहींसे राजा
SR No.010428
Book TitleNeminath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year1956
Total Pages433
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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