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________________ भाषानुवादसहिता सर्वव्यवहारलोपश्च प्राप्नोति । यस्मात् - द्रष्टाऽपि यदि दृश्याया आत्मेयात्कर्मतां धियः | यौगपद्यमदृश्यत्वं वैयर्थ्यं चाऽऽप्नुयाच्छ्रुतिः ॥ ४० ॥ यदि द्रष्टा में दृश्यस्व माना जाय, तब सब व्यवहारोंका लोप प्राप्त होगा । क्योंकि यदि द्रष्टा होकर भी आत्मा दृश्यभूत बुद्धिका प्रकाश्य बनेगा तो बुद्धि और आत्मा दोनोंको ही एक ही समयमें द्रष्टृत्व और दृश्यल एवं (दोनों ही द्रष्टा होनेके कारण ) दोनोंको अदृश्यस्व भी प्राप्त होगा । और फिर " न हि द्रष्टुर्द्रष्टेर्विपरिलोपो विद्यतेऽविनाशित्वात्'–अविनाशी होनेके कारण द्रष्टा श्रात्माकी दृष्टिका कभी लोप नहीं होता । " यह श्रुति भी व्यर्थ हो जायगी ॥ ४० ॥ कुतः । यस्मात् । नाऽलुप्तद्रष्टेर्दृश्यत्वं दृश्यत्वे द्रष्टृता कुतः । स्याच्चेद्दृगेकं निर्दृश्यं' जगद्वा स्यादसाक्षिकम् । ४१ ।। शङ्का - आत्मा क्यों दृश्य नहीं बन सकता ? उत्तर- ५९ घटादि पदार्थोंके समान दृष्टिका लोप हुए बिना तो दृश्यत्व नहीं बन सकता और जो दृश्य हो गया वह फिर द्रष्टा कैसे हो सकता है ? यदि दृश्य होनेपर भी उसका द्रष्टा होना माना जाय तो यह सम्पूर्ण जगत् द्रष्टारूप हो जानेसे दृश्यशून्य केवल द्रष्टा ही शेष रहेगा और यदि द्रष्टाका दृश्य होना माना जाय तो सारा जगत् द्रष्टासे शून्य हो जायगा ॥ ४१ ॥ उक्त युक्ति द्रढीकर्तुमागमोदाहरणोपन्यासःमन्यद्दृशेः सर्वं नेति नेतीति वाऽसकृत् । वदन्ती निर्गुणं ब्रह्म कथं श्रुतिरुपेक्ष्यते ।। ४२ ।। महाभूतान्यहङ्कार इत्येतत्क्षेत्रमुच्यते । न दृशेद्वैतयोगोऽस्ति विश्वेश्वरमतादपि ॥ ४३ ॥ 3 पूर्वोक्त युक्तिको दृढ़ करनेके लिए श्रुतिके प्रमाणोंको उद्धृत करते हैं'अतोऽन्यदार्तम्' (द्रष्टा के अतिरिक्त सब वस्तु मिथ्या हैं ) तथा 'नेति नेति' ( यह जो कुछ दृश्यमान है, वह आत्मा नहीं है ) इत्यादि निर्गुण ब्रह्मको प्रतिपादन १ – स्याच्चेहगेका निर्दृश्या, ऐसा भी पाठ है । २ – उक्तयुक्तिद्रढिम्ने, ऐसा भी पाठान्तर है । - ३ – द्वैतभोगोऽस्ति, भी पाठ है ।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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