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________________ नैष्कर्म्यसिद्धिः करनेवाली श्रुतियोंकी कैसे उपेक्षाकी जाय ? ॥ ४२ ॥ “महाभूत और अहंकार, ये सब क्षेत्र कहलाते हैं ।" इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण के मतसे भी द्रष्टाका द्वैतसे कोई सम्बन्ध नहीं है, यही सिद्ध होता है ।। ४३ ॥ अधुना प्रकृतार्थोपसंहारः। अब (अनात्म वस्तुके क्षेत्ररूप होने के कारण विकारयुक्त सिद्ध होनेपर) अहङ्कारादि द्वैतप्रपञ्च सब अनात्मरूप तथा मिथ्या है, इस प्रकृत अर्थका उपसंहार करते हैं एवमेतद्धिरुग्ज्ञेयं मिथ्यासिद्धमनात्मकम् । मोहमूलं सुदुर्बोधं द्वैतं युक्तिभिरात्मनः ॥ ४४ ॥ इस प्रकार मिथ्या भ्रमसे सिद्ध, अज्ञानमूलक श्रात्मस्वभावसे रहित होनेके कारण प्रमाण एवं युक्तियोंसे विरुद्ध द्वैतको पूर्ववर्णित युक्तियों के द्वारा आत्मासे पृथक् जानना चाहिए ॥ ४ ॥ कुतो मिथ्यासिद्धत्वं द्वैतस्येति चेत् ? न पृथङ् नात्मना सिद्धिरात्मनोऽन्यस्य वस्तुनः । आत्मवत्कल्पितस्तस्मादहङ्कारादिरात्मनि ।। ४५ ।। शङ्का-किस कारण से द्वैत मिथ्या है ? समाधान-अात्मासे व्यतिरिक्त द्वैतवस्तुकी सिद्धि प्रात्मासे पृथकपसे अथवा अभेद रूपसे नहीं हो सकती है । इसलिए अात्माम अहङ्कार आदि कल्पित हैं ॥ ४५ ॥ तस्मादज्ञानविजम्भितमेतत् दृश्याः शब्दादयः कप्ता द्रष्ट च ब्रह्म निर्गुणम् । अहं तदुभयं बिभ्रद् भ्रान्तिमात्मनि यच्छति ।। ४३ ॥ इसलिए यह सब अज्ञानका प्रभाव है कि जो शब्दादि विषय दृश्य बनाए गये हैं और निर्गुण ब्रह्म उनका द्रष्टा बनाया गया है, यह सब वास्तवमें अहङ्कार ही इन दोनोरूपोंको धारण करके अात्मामें द्रष्टत्वादिकी भ्रान्ति उत्पन्न करता है ॥ ४६॥ तत एवेयमभिन्नस्याऽत्मनो भेदबुद्धिः। । 'दृगेका सर्वभूतेषु भाति दृश्यैरनेकवत् । जलभाजनमेदेन मयूखस्रग्विमेदवत् ॥ ४७ ॥ इस अहङ्कारके ही कारण एक अभिन्न आत्मामें ( यह सुखी है, दुःखी है, मूर्ख है, पण्डित है, इत्यादि ) भेदबुद्धि उत्पन्न हुई है । सब प्राणियोंमें एक ही व्यापक अात्मा दृश्यभेदोसे ---जल-पात्रमें प्रतिबिम्बित सूर्य
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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