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________________ ५७ भाषानुवादसहिता यद्यात्मधर्मोऽहङ्कारो नित्यत्वं तस्य बोधवत् । नित्यत्वे मोक्षशास्त्राणां वैययं प्राप्नुयात् ध्रुवम् ॥ ३३॥ मदि अहङ्कारको आत्माका धर्म माना जाय तो उसको, ज्ञानके समान, नित्य मानना पड़ेगा। यदि उसको नित्य हो मान लिया जाय तो मोक्ष शास्त्र सब व्यर्थ हो जाएँगे ॥ ३३ ॥ स्यात्परिहारः स्वाभाविकधमन्त्राभ्युपगमेऽप्याम्रादिफलवदिति चेत् ? तन्न। हाँ, यदि कहो कि अहङ्कारको यात्माका स्वाभाविक धर्म माननेपर भी कोई दोष नहीं आता । जैसे अाम्रफलका हरितवर्ण स्वाभाविक होनेपर भी, वह नष्ट हो जाता है, इसी प्रकार अहङ्कार आत्माका स्वाभाविक धर्म होनेपर भी नष्ट हो जाएगा ? तो यह भी ठीक नहीं । क्योंकि अाम्रादेः परिणामित्वाद् गुणहानिर्गुणान्तरैः । अविकारि तु तद् ब्रह्म न हि द्रष्टुरिति श्रुतेः ॥ ३४ ॥ अाम्रादि फल परिणामी है, इसलिए उसमें गुणान्तरोंके उदित होनेसे पूर्वगुणोंकी हानि हो सकती है, परन्तु यह ब्रह्म तो सर्वथा विकार-रहित है। जैसा कि 'नहि द्रष्टुदृष्टर्विपरिलोपो विद्यते' इत्यादि अतियोंमें वर्णन किया गया है ॥ ३४ ॥ अहङ्कारस्याऽऽगमापायित्वात्तद्धर्मिणश्चाऽनित्यत्वं प्राप्नोति । आगमापायिनिष्ठत्वादनित्यत्वमियादृशिः । उपयन्नपयन्" धर्मो विकरोति हि धर्मिणम् ।। ३५ ।। अहङ्कार उत्पत्ति और नाशसे युक्त है। इसलिए उसको यदि अात्माका धर्म मानोगे तो आत्मा भी उत्पत्ति और नाशयुक्त होनेसे अनित्य हो जाएगा। क्योंकि धर्म उत्पन्न या नष्ट होता हुआ अपने धर्मीको विकारी बना देता है, यह नियम है ॥३५॥ अस्त्वनित्यत्वं कमुपालभेमहि, प्रमाणोपपन्नत्वादिति चेत् तन्न । शङ्का-अहङ्कारको आत्माका, धर्म माननेसे यदि अात्मामें अनित्यत्व दोष ग्राजाता है, तो आवे, किसे उपालम्भ दिया जाय ? प्रमाणोंसे ऐसा ही सिद्ध है। १-नित्यत्वमित्यस्य प्राप्नुयादित्यत्र सम्बन्धः। २–बोधशास्त्राणां, ऐसा भी पाठ है । ३-गुणान्तरे, भी पाठ है।। ४-इयाद्दशेः, ऐसा भी पाठ है। ५-उपयन् = प्रादुर्भवन् , अपयन् = तिरोभवन् । m .
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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