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________________ नैष्कर्म्यसिद्धिः । 'अहम्' इस प्रकार के ज्ञानसे, अहंबुद्धिसे अर्थात् अहं कारसे होनेवाले भेदग्रहकी निवृत्ति होनेपर कोई भी द्वैत निवृत्त होनेके लिए अवशिष्ट नहीं रहता। क्योंकि द्वतके सम्बन्धका मूल कारण यह अहंबुद्धि हो है। यह बात कहते हैं निवृत्तायामहंबुद्धौ ममधीः प्रविलीयते । अहंबीजा हि सा सिद्ध चत्तमोऽभावे कुतः फणी ॥ ३० ॥ अहं बुद्धि ही ममताका क्षेत्र है। इसलिए अहङ्कारके निवृत्त हो जानेपर ममता भी लय हो जाती है। क्योंकि जब रज्जुमें सर्पका भ्रम होनेका बीज-अन्धकारही नहीं रहा, तो फिर उसमें सर्पका भ्रम हो ही कैसे सकता है ॥ ३० ॥ विवक्षितदृष्टान्तांशज्ञापनाय दृष्टान्तव्याख्याउक्त दृष्टान्त के विवक्षित ग्रंशको जनाने के लिए दृष्टान्तकी व्याख्या करते हैं तमोभिभूतचित्तो हि रज्ज्वां पश्यति रोषणम् । भ्रान्त्याभ्रान्त्या विना तस्मानोरगं स्रजि वीचते ॥ ३१ ॥ अज्ञानसे आच्छादित चित्तवाला मनुष्य भ्रान्तिसे रज्जुमें सर्पको देखता है और जब भ्रान्ति नहीं रहती, तब वह मनुप्य रज्जु अथवा मालामें सर्पको नहीं देखता ॥ ३१ ॥ अनन्वयाच नाऽऽत्मधर्मोऽहङ्कारः। - अात्माके साथ अनुगत न होनेके कारण भी अहङ्कार श्रात्माका धर्म नहीं हो सकता। आत्मनश्चेदहं धर्मो यायान्मुक्तिसुषुप्तयोः । यतो नाऽन्वेति- तेनाऽयमन्यदीयो भवेदहम् ।। ३२ ॥ यदि अहङ्कार प्रात्माका धर्म होता तो वह मुक्ति और सुघुति अवस्थामें भी आत्माके साथ अनुगत रहता। परन्तु मुक्ति और सुषुतिमें वह आत्माके साथ अनुगत नहीं पाया जाता । इसलिए अहङ्कार किसी औरका ही धर्म है, अात्माका नहीं ॥ ३२ ॥ प्रात्मधर्मत्वाभ्युपगमेऽपरिहायदोपप्रसक्तिश्च । और अहङ्कारको प्रात्माका धर्म माननेपर और भी अनेक अपरिहार्य दोष या जाएँगे। १-संसिध्येत्, ऐसा भी पाठ है। २-अर्थात् जैसे मालामें सर्पकी प्रतीति भ्रान्तिसे होती है वैसे ही प्रात्मामें अहंकारकी प्रतीति अविद्यासे होती है। विद्याकी निवृत्ति होनेपर उससे उत्पन्न अहंवृत्ति भी निवृत्त हो जाती है, तब केवल ब्रह्माकार चितवृत्ति स्थित हो जाती है। ३-मुक्तसुषुप्तबोः, भी पाठ है।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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