SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . नैष्कर्म्यसिद्धिः ___माला में सर्पको भाँति जिसमें आकाश, वायु, तेज, जल और पृथिवी पादिरूप जगत्का प्रतिभास ( अज्ञानसे ) हुअा है तथा जो अज्ञानरूप अन्धकारको दूर करनेवाला और बुद्धिका साक्षी है, उस परमात्माको नमस्क र है ॥ १ ॥ ___ स्वसम्प्रदायस्य चोदितप्रमाणपूर्वकत्वज्ञापनाय विशिष्टगुणसङ्कीनिपूर्विका गुरोर्नमस्कारस्क्रिया। सद्विद्योपदेशरूप अपने सम्प्रदायको पूर्वोक्त शास्त्रमूलक बतलानेके लिए प्राचार्य (भगवान् श्रीशङ्कराचार्यके ) उत्कृष्टगुणोंका कीर्तन करते हुए उनको प्रणाम करते हैं अलव्ध्वाऽतिशयं यस्माद् व्यावृत्तास्तमबादयः। गरीयसे नमस्तस्मा अविद्याग्रन्थिभेदिने ॥२॥ जिस गुरुवरके अतिरिक्त कहीं भी उत्कर्षताको न पाकर तमप ग्रादि उत्कर्षवाचक शब्द ( अन्यत्र कहीं स्थान न मिलनेसे ) केवल उन्हीं में रहते हैं । और जो शिष्योंकी अविद्या-ग्रन्थिके भेदन करनेमें अतीव समर्थ एवं सबसे श्रेष्ठ हैं उन श्रीगुरुवर ( भगवान् श्रीशङ्कराचार्य ) को हमारा प्रणाम है। नमस्कारनिमित्तस्वाशयाविष्करणार्थः' - जिस अभिप्रायसे गुरुको प्रमाण किया, उसे प्रकाशित करनेके लिए अग्रिम श्लोकसे कहते हैं वेदान्तोदरसंगूढं संसारोत्सारि वस्तुगम् । ज्ञानं व्याकृतमप्यन्यैर्वक्ष्ये गुर्वनुशिक्षया ॥ ३ ॥ जो ( ज्ञान ) वेदान्तशास्त्रोंके अन्दर अत्यन्त गूढ़ है, जिसको स्थूलबुद्धिवाले लोग नहीं जान सकते और जो अधिष्ठानभूत ब्रह्मको विषय करके सम्पूर्ण संसारका बाधकर देता है, उस विज्ञानका वर्णन यद्यपि अन्य विद्वानोंने अनेक प्रकारसे किया है, तथापि श्रीगुरुकी आज्ञाका पालन करने के लिए मैं उसका स्पष्ट रूपसे वर्णन करता हूँ॥३॥ किंविषयं प्रकरणमिति चेत्तदुपन्यासःइस प्रकरणमें किस विषयका प्रतिपादन किया जायगा ? इस बातका वर्णन अग्रिम श्लोकसे करते हैं १ 'स्वाशयाविष्करणार्थम्' भी पाठ है। २ ज्ञानम्-ज्ञायते अनेन इति ज्ञानम्-प्रकरणम् 'ज्ञानं वक्ष्ये' इत्यत्र वाक्यप्रयोगानुकूलव्यापारो वचधातोरर्थः । जनकत्वं द्वितीयार्थः । ततोऽन्वयः।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy