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________________ भावानुवादसहिता यसिद्धा विदमः सिद्धिर्यदसिद्धौ न किञ्चन । Arora कनिष्ठस्य याथात्म्यं वक्ष्यते स्फुटम् ॥ ४ ॥ जिस चैतन्यरूप ब्रह्मके अन्तःकरण आदिमें प्रतिबिम्बित होनेसे इदम् पदार्थप्रमाता, प्रमाण, प्रमेय श्रादि जड़ जगत्की सिद्धि ( स्फुरण ) होती है और जिसके प्रतिबिम्बित न होनेसे सिद्धि नहीं होती, उस ब्रह्मतत्त्वका यथार्थ स्वरूप इस ग्रन्थ में स्पष्ट रीति से वर्णन किया जाता है ॥ ४ ॥ विवक्षित प्रकरणार्थ प्ररोचनायानुक्त दुरुक्ताप्रामाण्य कारणशङ्काव्धुदासेन स्वगुरोः प्रामाण्यवर्णनम् - इस प्रकरण में प्रतिपाद्य विषयपर मुमुक्षुओं की श्रद्धा उत्पन्न करानेके लिए "यह विपय गुरुजीने नहीं कहा, या कहा भी हो तो यह सुन्दर कथन नहीं है, इसलिए अप्रमाण है ।" इत्यादि शङ्कात्रको दूर करते हुए उक्त विषयमें अपने गुरुका प्रामाण्य वर्णन करते हैं २ 笑 गुरुक्तो वेदराद्धान्तस्तत्र नो वम्यशक्तितः । सहस्रकिरणव्याप्ते खद्योतः किं प्रकाशयेत् ॥ ५ ॥ 3 श्रीगुरुने जिस वेद सिद्धान्तका वर्णन किया है, उस पर मैं कह ही क्या सकता हूँ, क्योंकि उनके प्रतिपादित विषयों में कुछ अधिक कहनेकी शक्ति मुझमें है नहीं । भला भगवान् सूर्य अपनी प्रखर किरणोंसे जिस देशको प्रकाशित कर रहे हों, वहाँ बेचारा खद्योत किसको प्रकाशित कर सकता है ॥ ५ ॥ गुरुणैव वेदार्थस्य परिसमापितत्वात्प्रकरणोत्क्तौ ख्यात्याद्यप्रामाएयकारणाशङ्केति चेत्तद्व्युदासार्थमुपन्यासः - जब गुरुजीने ही समस्त वेदार्थका व्याख्यान भलीभाँति कर दिया है, तब इस नूतन ग्रन्थकी रचना से ग्रापका अभिप्राय ज्ञात होता है लोगों में प्रतिष्ठा अथवा धन आदि प्राप्त करने का है, यदि आप इसी इच्छासे ग्रन्थका निर्माण करते हैं तो यह प्रामाणिक है, इत्यादि शङ्कायका निरास करनेके लिए अग्रिम लोकसे कहते हैं -- न ख्यातिलाभ पूजार्थं ग्रन्थोऽस्माभिरुदीर्यते । स्वबोधपरिशुद्धयर्थं ब्रह्मविनिकषाश्मसु ॥ ६ ॥ १ यस्य सद्रस्यात्मनः सिद्धौ सत्तास्फूर्तिरूपेण सत्रे घटादेर्दृश्यस्यापि सत्वेन व्यवहारः । यदसिद्धौ न किंचन । अभ्यस्तस्याधिष्ठान सत्तातिरिक्तसत्ताऽनङ्गीकारात् । २ प्रत्यग्धर्मैकनिष्ठस्य = जीवस्य । ३ सहस्रकिरणव्याप्ते 'आकाशे' इति शेषः ।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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