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________________ भाषानुवादसहिता मूल कारण ग्रात्माका ज्ञान ही है । अतएव उसकी निवृत्ति हुए बिना पूर्वोक्त दुःखादिसे छुटकारा नहीं हो सकता । सुखस्य चाsनागमापायिनोऽपरतन्त्रस्यात्मस्वभावत्वात्तस्याऽनवबोधः पि 'धानमतस्तस्योच्छतावशेष पुरुषार्थ परिसमाप्तिः । अज्ञाननिवृत्तेश्व सम्यग्ज्ञानस्वरूपलाभमात्र हेतुत्वात्तदुपादानम् श्रशेषाऽनर्थ हेत्वात्माऽनवबोधविषयस्य चाsनागमिक प्रत्यक्षादिलौकिकप्रमाणाविषयत्वाद दान्तागमवाक्यादेव सम्यग्ज्ञानम् । अतोऽशेपवेदान्तसारसंग्रह प्रकरणमिदमारभ्यते । पूर्वोक्त ज्ञान केवल अनथका ही कारण है, ऐसा ही नहीं, किन्तु उत्पत्ति और नारा से रहित तथा कभी पराधीन न होनेवाला जो ग्रात्मस्वरूप सुख है, उसका भी वह आवरण करदेनेवाला है । इसलिए उसका नाश होनेसे ही सम्पूर्ण पुरुषार्थकी परिसमाप्ति अर्थात् कृतकृत्यता प्राप्त होती है । सम्यग् ज्ञानरूप ग्रात्मसाक्षात्कार ( तत्त्वज्ञान ) ही अज्ञान के नाशका एकमात्र कारण है । अतएव उसके अधिकारीको अन्य उपायोंका परित्याग करके उसका ( तत्त्वज्ञानका ) सम्पादन करना चाहिए। समस्त अनर्थों के उत्पादक ग्रात्मस्वरूपाज्ञान के विषयका - आत्माका - पाक्षात्कार शास्त्रीय प्रत्यक्षादि लौकिक प्रमाणों द्वारा न हो सकने के कारण केवल एक वेदान्तशास्त्रके वाक्योसे ही होता है । एतदर्थ समस्त वेदान्त के सारका संग्रह करके यह प्रकरण प्रारम्भ किया जाता है । तत्राऽभिलषितार्थप्रचयाय प्रकरणार्थ सूत्रणाय चायमाद्यः श्लोकः 3 उसमें अभिलत्रित अर्थ --- ( शिष्यपरम्परा द्वारा शिष्ट पुरुषों में ) प्रकरण के प्रचार एवं प्रकरणार्थका विषय और प्रयोजनका --संक्षेप से सूचन करने के लिए इष्टदेवता नमस्काररूप मङ्गलाचरण इस प्रथम श्लोक से करते हैं- खाऽनिलाऽग्न्यव्धरित्र्यन्तं सक्फणीवोद्गतं यतः । ध्वान्तच्छिदे नमस्तस्मै हरये बुद्धिसाक्षिणे " ॥ १ ॥ १ तस्य सुखात्मनोऽनवबोधः पिधानमावरणम् सुखाप्रतीत्या विपरीतप्रतीतिहेतुः । २ शास्त्रैकदेशसम्बद्धं शास्त्रकार्यान्तरे स्थितम् । आहुः प्रकरणं नाम ग्रन्थभेदं विपश्चितः ॥ अर्थात् — जो शास्त्र के एकदेश से सम्बन्धित हो और शास्त्र के कामन्तिर में स्थित हो, ऐसे ग्रन्थभेदको विद्वान् लोग प्रकरण कहते हैं । ३ ' प्रकरणार्थ संसूचनाय' ऐसा भी पाठ है । ४ 'ध्वान्तच्छिदे' इसके द्वारा ग्रज्ञाननिवृत्तिरूप प्रयोजन कहा गया है । ५ 'हरये बुद्धिसाक्षिणे' इस सामानाधिकरण्यसे प्रत्यगात्मा (जीव ) और परमात्मा ( ब्रह्म ) का एकत्वरूप विषय घोषित किया गया है।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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