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________________ भाषानुवादसहिता १२७ वस्त्वेकनिष्ठ वाक्यं चेन तस्य स्याक्रियार्थता । वस्तुनो ह्येकरूपत्वाद्विकल्पस्याप्यसम्भवः ॥ ८२ ॥ जब कि उपक्रम, उपसंहारादि षडविध तात्पर्य-निर्णायक लिङ्गसे विचार करके प्रयत्नसे देखनेपर भी तत्वमस्यादि वाक्य क्रियापर है, ऐसी सम्भावना तक नहीं होती, तब यह वाक्य उपासना-विधिपरक है, यह कहना अत्यन्त असम्भावित है, वही कहते हैं वाक्य यदि केवल वस्तुपरक है, तब वस्तु, जो जीव-ब्रह्मका ऐस्य है, वह कूटस्थ होनेसे क्रियासाध्य नहीं हो सकता। क्योंकि कूटस्थ होनेसे ही वह नित्यसिद्ध है। और वह उपासनादि क्रियासाध्य है, ऐसा विकल्प भी नहीं हो सकता। अतएव यह वास्य प्रसङ्ख्यानका अर्थात् उपासनाका विधायक नहीं है ॥२॥ भिन्नविषयत्वाच न प्रमाणान्तरविरोधः । कथम् । उच्यते-- . अपूर्वाधिगमं कुर्वत् प्रमाणं स्यान्न चेन तत् । .. न विरोधस्ततो युक्तो विभिन्नार्थावबोधिनोः ॥ ८३ ॥ [प्रमाणान्तरके साथ विरोध है, ऐसा मान लेनेपर भी उसका परिहार कहा, अब यह कहते हैं कि-1 दोनोंका ( वाक्य और प्रत्यक्षका) विषय भिन्न-भिन्न है, इसलिए भी प्रमाणान्तरके साथ विरोध नहीं है । क्यों नहीं है ? यह बतलाते हैं अन्य प्रमाणसे अज्ञात 'अर्थको कहनेवाला ही प्रमाण । प्रमाण माना जाता है । यदि प्रमाण अज्ञात अर्थका बोध न करके ज्ञात अर्थका ही बोध करे तब वह अनुवादककी तरह प्रमाण नहीं हो सकेगा। इसलिए प्रत्यक्ष और वाक्य इन दोनों प्रमाणोंका विषय परस्पर भिन्न ही है, ऐसा मानना चाहिए । तब भिन्न-भिन्न अर्थोका बोध करानेवालोंका परस्पर विरोध कैसे होगा ? अर्थात् विरोध नहीं हो सकता ॥ ८३ ॥ य एवमपि भिन्नविषयाणां विरोधं वक्ति सोऽत्रापि विरोध ब्रूयात् नाऽयं शब्दः कुतो यस्माद्रूपं पश्यामि चक्षुषा । इति यद्वत्तथैवाऽयं विरोधोऽक्षजवाक्ययोः ॥ ८४ ।। जो इस प्रकार भी ( इतना समझनेपर भी) भिन्न-विषयवाले प्रत्यक्ष और वाक्य इन दोनोंका परस्पर विरोध है, ऐसा कहता है वह वादो तो ऐसे स्थलोंमें भी विरोध कह सकता है, जैसे कि-'यह शब्द नहीं है। क्योंकि मैं चक्षुसे रूपको देखता हूँ' अर्थात् ऐसे स्थलमें रूप-ग्राहक चक्षु एवं शब्द-ग्राहक श्रोत्रमें जैसे विरोध नहीं हो सकता। ऐसे ही प्रकृत स्थल में भी विरोध नहीं है ॥८४ ॥
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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