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________________ नैष्कर्म्यसिद्धिः चूंकि यहाँपर अहङ्कारके व्याजसे शुद्ध प्रत्यगात्माका ग्रहण कराना इष्ट है। इस कारण अहंवृत्ति भी अपने स्वरूपके विलय द्वारा ही वास्यार्थ के ज्ञानमें कारण होती है, इस बातको कहते हैं क्योंकि, यह मुमुक्षु 'मैं ब्रह्म हूँ' इस प्रकार अहङ्कार से ही ब्रह्मको जानता है । इस कारण अहङ्कार स्वरूपके बाध द्वारा ही अहङ्कार वाक्यार्थ-ज्ञानमें कारण है ॥ ४३॥ - अत एव च यः प्रतिज्ञातोऽर्थों 'नाऽहंग्राह्ये न तद्धीने इत्यादिः स युक्तिभिरुपपादित इति कृत्वोपसंह्रियते इसलिए जो प्रतिज्ञा की गयी थी कि "अहङ्कारसे ग्राह्य जो आत्मा है, अथवा उससे रहित जो विशुद्ध आत्मा है, इन दोनोंमें विरोध नहीं है" इत्यादिउसका युक्तियोंसे उपादन किया गया, इसलिए अब उपसंहार करते हैं गृहीताऽहंपदार्थश्चेत्कस्माज्ञो न प्रपद्यते । प्रत्यक्षादिविरोधाच्चेत्प्रतीच्युक्तिने युष्मदि ॥ ४४ ॥ यदि 'अहम्' पदार्थका ज्ञान हुआ है तो फिर क्यों विद्वान् पुरुष 'अहं ब्रह्मास्मि' वाक्यके अर्थको नहीं ग्रहण करता ? यदि कहो कि प्रत्यक्षादि प्रमाणोंके साथ विरोध होनेसे नहीं जानता, सो यह ठीक नहीं। क्योंकि 'तत्त्वमस्यादि' वाक्योंसे जो अभेदका कथन किया है, वह उपाधि-विशिष्टोंका नहीं किया है, किन्तु शुद्ध प्रात्माका किया है। प्रत्यक्षादि तो उपाधि-विशिष्ट का बोधन करनेवाले हैं, न कि शुद्ध श्रात्माका। इसलिए . दोनोंका विषय भिन्न होनेसे कोई विरोध नहीं है ॥ ४४ ॥ पूर्वस्यैव श्लोकार्थस्य विस्पष्टतामाह-- पराञ्च्येव तु सर्वाणि प्रत्यक्षादीनि नात्मनि । प्रतीच्येव प्रवृत्तं तत्सदसीति वचोऽञ्जसा ॥ ४५ ॥ पूर्वोक्त श्लोकके अर्थको ही स्पष्ट करते हैं प्रत्यक्षादि प्रमाण पराक् अर्थात् जड़ वस्तुको ही विषय करनेवाले हैं, प्रत्यकात्माको विषय नहीं कर सकते । इसी कारणसे 'तत्त्वमसि' इत्यादि वाक्य अनायाससे शुद्ध अात्माका अभेद प्रतिपादन कर सकते हैं ॥ ४५ ॥ . तस्मात्प्रमातृप्रमाणप्रमेयेभ्यो हीयमानोपादीयमानेभ्योऽन्वयव्यतिरेकाभ्यां मुञ्जषीकावदशेषबुद्धिविक्रियासाक्षितयाऽऽत्मानं निष्कध्य तत्त्वमस्यादिवाक्येभ्योऽपूर्वादिलक्षणमात्मानं विजानीयात् । तदेतदाह--- १ पूर्वस्यैव पदार्थस्य, ऐसा और 'विस्पष्टार्थमाह, ऐसा भी पाठ है। २ मुझेषीकादिवत्, ऐसा पाठ भी है।
SR No.010427
Book TitleNaishkarmya Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrevallabh Tripathi, Krushnapant Shastri
PublisherAchyut Granthmala Karyalaya
Publication Year1951
Total Pages205
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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