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________________ पार्वनाम की पतिमा को जैसे ही मन्दिर से लेकर उस मुहल्ले से बाहर आ रहे थे कि सलमानों के मंड ने ग महल्ले में प्रवेश किया तथा देखते ही देखते सभी मकानो पर अपना साकार किया । वे नागे ही व्यक्ति तत्काल मुलतान से चले आये और भगवान की मूति को भी नाच ले जाये। इस तन्ह मुलतान दिगम्बर जैन समाज की अपनी धार्मिक निष्ठा, सच्चरित्रता एव जिन प्रतिमाओं तथा जिनवाणी को लाने के प्रयास के शुभ भाव से चल अचल सम्पत्ति के नासान के अतिरिक्त किसी भी परिवार के एक भी व्यक्ति को शारीरिक कष्ट एव जीवन की हानि नहीं हुई। जोधपुर स्टेगन के पाम. दिगम्बर जैन मन्दिर मे मूतियो एव शास्त्र भण्डार की पेटियो को नक्षित खवा दिया गया। श्री गमानीनन्दजी, श्री वृद्धसेनजी सुपुत्र श्री छोगमलजी सिंघवी मुलतानी जो पाकिस्तान बनने के पूछ समय पूर्व जोधपुर आकर रहने लगे थे उनके यहाँ समाज एक दिन ठहरने के पश्चात जयपुर के लिये रवाना हो गया। गाठी के जयपुर पह चते ही जैन समाज के कुछ लोग जो पहिले से ही स्टेशन पर आए हुए थे, मुलतानी जैन भाइयो का आदर सत्कार करते हुए शहर मे ले गये, तथा जहाँ उनके व्हराने आदि की व्यवस्था की थी वहाँ उन्हे पहु चा दिया। जयपुर मे आवास मिलने मे विशेष कठिनाई नही हुई, किन्तु कहाँ मुलतान के मुख मुविधायुक्त अपने मकान और कहाँ किराये के मिले जैसे तैसे मकान, लेकिन जीवन मे उतार चढाव सुख दु ख अच्छी बुरी परिस्थितियों आती है, उनमे अपने आपको समर्पित करदे तथा विशेष आकुल न हो वही सच्चा मानव है। विपत्तियो से घबराकर अधीर होने वाले तो बहुत होते हैं लेकिन उनका दृढता पूर्वक सामना करने वाले विरले ही होते है । मुलतान जैन समाज ने तो ऐसी विकट एक कठिन परिस्थिति मे भी धैर्य एव साहस को नही छोडा तथा अपने भविप्य के निर्माण मे दृढतापूर्वक लग गये। कुछ दिनो पश्चात् जोधपुर से रेलगाडी के एक विशेष डिब्बे मे मतियो एव शास्त्र भण्डार की पेटियो को जयपुर ले आए तथा श्री शान्तीनाथ दिगम्बर जैन बडा मन्दिर तेरह पथियान, घी वालो का रास्ता, जौहरी बाजार मे बडे उत्साह एव उल्लास के साथ मूर्तियो को एक वेदी मे विराजमान कर दिया गया तथा शास्त्र भण्डार को सुव्यवस्थित रूप से आलमारियो मे रख दिया और मुलतान की तरह यहा भी सभी भाई बहिन दर्शन भक्ति एव सामूहिक पूजन बडे ठाठ वाट से करने लगे, इससे शीघ्र ही मुलतान समाज जयपुर जैन समाज के लिये आकर्षण का केन्द्र वन गया। पाकिस्तान से आने के पश्चात् मुलतान से आए जैन बन्धु दो भागो मे विभक्त हो गये। उसमे लगभग साठ प्रतिशत तो जयपुर बस गये तथा चालीस प्रतिशत दिल्ली जाकर रहने लगे, इसका मुख्य कारण व्यवसाय की व्यवस्था है। • मुलतान दिगम्बर जैन समाज इतिहास के आलोक मे [ 63
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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