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________________ डेरागाजीखान डेरागाजीखान का अपना इतिहास है। नगर को किसी गाजी उपाधि वाले मुस्लिम शासक द्वारा वसाये जाने के कारण इस नगर का नाम डेरागाजीखान पड़ा। पजाव (पाकिस्तान) मे डेरागाजीखान दूसरा शहर था जहाँ प्राचीन काल से ओसवाल दिगम्बर जैन समाज रहता था । डेरागाजीखान मुलतान से 60 मील दूर सिन्धु नदी के तटपर बसा हुआ था पजाव मे केवल इन दो स्थानो पर ही ओसवाल दिगम्वर जैन समाज होने के कारण इनका आपस मे भाईचारा एव चोलीदामन का साथ था। डेरागाजीखान में दिगम्बर जैन मन्दिर डेरागाजीखान मे एक विशाल एव भव्य दिगम्बर जैन मन्दिर था जिसमे एक कलात्मक वेदी थी। उस वेदी मे कितनी ही आकर्षक एव सु दर प्रतिमाए थी किन्तु एक नीलम की अतिशययुक्त चमत्कारिक प्रतिमा थी जो आठवे तीर्थंकर 1008 भगवान श्री चन्द्रप्रभु की थी, एक दिन किसी अजैन व्यक्ति ने वह प्रतिमा मन्दिर से चुरा ली और उसे अपने घर मे छपाकर रख दी। जव प्रात काल समाज को इस घटना की जानकारी मिली तो सपूर्ण समाज शोक सागर मे डूब गया, तथा पूरे समाज ने अन्न-जल का त्याग कर दिया, यहाँ तक कि कई महानुभावो ने तो मत्ति न मिलने तक अनशन ले लिया ओर मूत्ति ढ ढ निकालने का सकल्प लिया। दूसरे ही दिन रात्रि को एक भाई को स्वप्न आया कि मत्ति मन्दिर के समीप ही एक अमुक जनेतर भाई के मकान मे अमुक कमरे की छत की कडी मे रखी है । प्रात होते ही उस व्यक्ति ने स्वप्न की बात समाज के प्रमुख महानुभावो को सुनाई तो कुछ व्यक्ति तत्काल ही उस मकान मे गये और वताए हुए स्थान पर देखा तो वह मृत्ति यथावत रखा हुई मिल गई। प्रतिमा पाकर सम्पूर्ण समाज में हर्ष की लहर दौड़ गई । तत्काल ही पूजा पाठ का आयोजन किया गया तथा विधि विधान आदि धार्मिक अनुष्ठान के माथ उल्लास पूर्वक मूत्ति को वेदी मे पुन विराजमान किया गया। इसके पश्चात् ही नमाज के प्रमुख महानुभावो ने अन्न-जल ग्रहण किया । वर्तमान मे जो डेगगाजीखान है वह तो नया बसाया गया शहर है। इसके पूर्व रागाजीखान मिन्धु नदी के तट पर वमा हुआ था। सन 1904 मे सिन्धू नदी के कटाव के कारण माग शहर जल मग्न हो गया, किन्तु सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह थी कि दिगम्बर जैन मन्दिर चागे और ने अथाह जल में घिरा होने पर भी यथावत खटा हुआ था। मुलतान दिगम्बर जैन नमाज-इनिहाम के पालोप में
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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