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________________ मूर्तिया हैं, इनके प्रभाव स कोई भी सकट नही आ सकता है, पूर्ण विश्वास रखे । साथ ही यह भी कहा कि अगर मूर्तियां नही जावेगी तो वे भी नही जावेगे। धर्म के प्रति विश्वास एव दृढता देखकर पायलाट चौधरी ले चलने को तैयार हो गया। उस समय सभी स्त्री पुम्पो ने जहाज मे बैठते ही प्रतिज्ञा की कि जब तक जहाज सकुशल जोधपुर नही पहुंचेगा तव तक उनका अन्न जल का त्याग है । कैसा होगा वह समय और कैसी होगी उनकी मन की स्थिति यह विचारणीय है। जव हवाई जहाज ने उडान भरी तव सभी ने णमोकार मंत्र का स्मरण किया। कुछ क्षणो मे वायुयान जोधपुर पहुच गया। जैसे ही हवाई अड्डे पर हवाई जहाज उतरा हवाई जहाज से बाहर आते ही पायलट चौधरी ने भावविभोर होकर जिन प्रतिमाओ को नमस्कार किया और कहा कि इन्ही का चमत्कार है कि हवाई जहाज मे इतना अधिक भार होते हुए भी यह जहाज फूल के समान चलता रहा तथा सकुशल यहाँ पहुच गया, अन्यथा जहाज मे इतना वजन लाना विलकुल सम्भव नही था । यहाँ एक घटना और उल्लेखनीय है कि कुछ कारणवश तीन चार भाई मुलतान मे रह गये थे और भगवान पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा जो मुलतान किले से प्राप्त हुई थी, इसके मन्दिर की वेदी खाली न रहे इस अभिप्राय मूर्तियां लाते समय वहाँ विराजमान कर आये थे। वे लोग नित्य दर्शन पूजन आदि करते थे। कुछ दिन पश्चात रात्रि को उनमे से एक भाई श्री भवरचन्दजी सिंघवी को स्वप्न आया कि वे लोग वहाँ से जल्दी चले जावें और मन्दिर मे जो मति विराजमान है उसके स्थान पर श्री श्रीदासरामजी गोलेछा के घर के नीचे वाले कमरे के आले मे एक अप्रतिष्ठित मूर्ति रखी है उसे मन्दिर की वेदो मे रखकर भ० पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठित मति को साथ श्री भवरचदजी मिघवी । Ar ANS . mer-4 ले जाव । प्रात तोते ही उन्होंने दामूरामजी एव अन्य भाइयो को स्वप्न की बात कही, इम पर दागृगमजी ने कहा कि उन्हे तो मूर्ति के विषय में कोई जानकारी नहीं है, चलो देख लेते जरामर मोगोर कर देखा तो वास्तव मे उमी आले मे मति रखी हुई मिली, जिम देगासनगमजो आपनयंरित हो गये । उन्होने कहा कि उनकी साठ वर्ष की अवस्था में उसने न तो नभीम मुनि को रगा और न प भी देखा ही, पता नहीं यह कब फैमे और मेमा माई। उस मनि तो नारर मन्दिरजी की वेदी में रखा गया तथा भगवान .मुना दिगम्बर जैन समाज-तिहाम के आजा में
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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