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________________ स्वतंत्रता वर्ष सन् 1947 15 अगस्त 1947 को जहां सारे भारतवर्ष मे स्वतंत्रता प्राप्ति के उपलक्ष्य मे मायोजित हो रहे थे प्रत्येक भारतवासी अपने भविष्य के सुनहले स्वप्न देख रहा था पानम्पूर्ण राष्ट्र में नवी चेतना जाग्रत हो रही थी वही पाकिस्तान मे हिन्दू, जैन एवं सिक्ख आदि के विनता एक विचिन समस्या बन कर खडी हो गयी । तत्कालीन अग्र ेज सरकार द्वारा स्वतंत्रता की घोषणा के साथ ही पाकिस्तान मे साम्प्रदायिक उपद्रव प्रारम्भ हो गये, गनने लगी। रेल यात्रा, बम यात्रा सुरक्षित नही रह सकी । मुलतान एव गाजीवान के दिगम्बर जैन समाज के सामने एक अजीव सकट उपस्थित हो गया । एक और जीवन मृत्यु का प्रश्न दूसरी ओर नैकडो वर्षो से पालन पोषण करने वाली जन्म भूमि का परित्याग | जिन प्रतिमाओ एव शास्त्र भण्डारो की सुरक्षा का प्रश्न, धन दौलत का अपहरण एवं मां वहिन बेटियो की इज्जत का प्रश्न । देश के विभिन्न भागो से भीषण नाम्प्रदायिक दंगो की खबर जब सुनायी देती तो दिल दहल जाता। समाज के प्रमुख व्यक्तियो के सामने केवल एक प्रश्न या किस प्रकार समाज, धर्म एव साहित्य की रक्षा की जाय ? आखिर समाज की मीटिंग हुई और सवने यही तय किया कि शीघ्रातिशीघ्र उन्हे अपनी जन्मभूमि को छोड़कर भारत में चले जाना चाहिये इसी मे सबकी सुरक्षा है तथा धर्म की रक्षा है । तत्काल नमाज के तीन चार महानुभाव देहली गये और किसी तरह वाचूयान किराया पर ले चलने की पूरी कोशिश करने लगे । देहली मे उस समय सरकार एव किसी भी हवाई जहाज कम्पनी से व्यवस्था नही हो सकी । आखिर वे चारो महानुभाव हवाई जहाज से बम्बई गये और वहाँ पर वायुयान की एक प्राइवेट कम्पनी को 400/- रुपये प्रति व्यक्ति किराये के हिसाब से हवाई जहाज देने के लिये राजी कर लिया और बम्बई से मुलतान हवाई अड्डे पर पहुच गये । उधर नगर मे समरत दिगम्बर जैन परिवारो ने अपना थोडा बहुत सामान जो ले सक्ते थे उसे साथ मे ले लिया और हवाई अड्डे की ओर चल पडे । चलते समय अपने सुन्दर भवनो, पृश्तेनी जायदाद, मामान से भरी हुई दुकानो एव व्यापारिक प्रतिष्ठानो को छोडने से सभी की आँखो मे आसू आ गये क्योकि यह किसको पता था कि उन्हे अपनी प्राणो से भी प्यारी सम्पत्ति को इस प्रकार छोडना पडेगा । लेकिन छोडने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय शेष नहीं रहा था । उन्हें सतोष इसी बात का था कि वे अपने साथ अपना परा परिवार, भगवान की मूर्तियाँ एव शास्त्र भण्डार ले जा रहे है । हवाई जहाज मे मूर्तियो एव शास्त्रों की पेटियो को रखा गया तथा जब सवारियो के बैठने का नम्बर आया तो जहाज के चालक ने हवाई जहाज मे बोझ अधिक होने के कारण उडान भरने से मना कर दिया। सभी के चहरे उतर गये और भविष्य की चिन्ता सताने लगी। लेकिन समाज के मुखियाओ ने पाइलेट को समझाया कि इन पेटियो मे भगवान की मुलतान दिगम्बर जैन समाज - इतिहास के आलोक मे [ 61
SR No.010423
Book TitleMultan Digambar Jain Samaj Itihas ke Alok me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMultan Digambar Jain Samaj
Publication Year
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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